प्रयागराज में प्रदेश के पहले बायो-सीएनजी प्लांट की शुरुआत, 153 करोड़ की लागत से बने इस आधुनिक प्लांट से हर साल होगी 53 लाख की आय।

प्रयागराज के नैनी क्षेत्र के अरैल में उत्तर प्रदेश के पहले बायो-CNG प्लांट का बुधवार को उद्घाटन किया गया। पहले ही दिन नगर निगम द्वारा 18 से 20 टन गीले कचरे की आपूर्ति की गई, जिसकी प्रोसेसिंग की प्रक्रिया शुरू हो गई। इस कचरे में मुख्य रूप से किचन और रेस्टोरेंट से निकलने वाला वेस्ट शामिल था।
प्रक्रिया की शुरुआत ट्रामिल मशीन से पहली प्रक्रिया में कचरे को ट्रामिल मशीन में डाला गया, जहां उसकी छंटाई की गई और लुगदी तैयार की गई। इसके बाद इस लुगदी को विभिन्न मशीनों में प्रोसेस करते हुए बायो-CNG उत्पादन के लिए तैयार किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में उच्च गुणवत्ता की विदेशी मशीनें लगाई गई हैं, जो प्लांट की दक्षता को सुनिश्चित करती हैं। इस मौके पर नगर आयुक्त साईं तेजा ने बताया कि शहरवासियों से अपील की गई है कि वह गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग रखें और डोर-टू-डोर कलेक्शन करने वाली एजेंसियों को अलग-अलग सौंपें। इसके लिए एजेंसियों के साथ बैठक कर निर्देश दिए गए हैं कि गीले कचरे के अलग संग्रहण को प्राथमिकता दी जाए।
343 TPD की विशाल क्षमता, हर दिन बनेगी बायो-CNG और जैविक खाद बायो-CNG प्लांट की कुल क्षमता 343 टन प्रतिदिन (TPD) है। यह प्रतिदिन लगभग 21.5 टन गैस, 109 टन ठोस जैविक खाद और 100 टन तरल जैविक खाद का उत्पादन करेगा। प्रथम चरण में 200 टन क्षमता के गीले कचरे से गैस बनाने का कार्य शुरू हो चुका है, जबकि शेष 143 टन क्षमता धान के पुआल और गोबर से गैस उत्पादन के लिए विकसित की जा रही है। प्रयागराज नगर निगम के पर्यावरण अभियंता उत्तम वर्मा ने बताया कि इस प्लांट से प्रतिवर्ष लगभग 53 लाख की आय अर्जित होगी। यह कमाई उस कचरे से होगी जिसे पहले अनुपयोगी समझकर फेंक दिया जाता था। अब यही फल-सब्जी के छिलके, जूठन और फूल-फूलों का कचरा प्रतिदिन 8900 किलो बायो-CNG और 109 टन खाद में बदला जाएगा।
पीपीपी मॉडल पर किया गया निर्माण, 12.49 एकड़ भूमि नगर निगम ने दी परियोजना का संचालन पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर किया गया है। प्रयागराज नगर निगम ने इसके लिए नैनी के जहांगीराबाद में 12.49 एकड़ भूमि दी है। प्लांट का संचालन “एवर एनवायरो रिसोर्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड” कर रही है। कंपनी और नगर निगम के बीच 25 वर्षों का अनुबंध किया गया है। परियोजना प्रमुख हिमांशु श्रीवास्तव ने बताया कि प्लांट की शुरुआत में प्रतिदिन 30 टन गोबर डाला जाएगा, जिससे एक्टिव बैक्टीरिया उत्पन्न होंगे जो कचरे को पचाकर गैस बनाने की प्रक्रिया को गति देंगे। लगभग 40-45 दिनों में यह प्रक्रिया स्थायी रूप से चलने लगेगी, जिसके बाद रोजाना गोबर की आवश्यकता नहीं होगी।
कैसे बनती है बायो-CNG और खाद? जानिए पूरी प्रक्रिया 1. नगर निगम की गाड़ियां घर-घर जाकर गीला-सूखा कचरा एकत्र करती हैं। 2. गीले कचरे को प्लांट तक पहुंचाकर एकत्रित किया जाता है। 3. जेसीबी मशीन से कचरे को ट्रामिल मशीन में डाला जाता है, जहां उसकी छंटाई की जाती है। 4. इसके बाद हैमर मिल मशीन से कचरे को क्रश कर लुगदी बनाई जाती है। 5. लुगदी को फीड टैंक और फिर डाइजेस्टर में डाला जाता है, जहां एक्टिव स्लरी या गोबर मिलाकर बैक्टीरिया तैयार किए जाते हैं। 6. डाइजेशन पूरा होने के बाद रॉ बायोगैस तैयार होती है। 7. गैस को VPSA सिस्टम से साफ कर बायो-CNG और CO₂ को अलग किया जाता है। 8. तैयार बायो-CNG को इंडियन ऑयल अडानी गैस लिमिटेड (IOAGL) को बेचा जाएगा। 9. ठोस और तरल जैविक खाद को पैक कर कृषि कार्यों में बेचा जाएगा।
दो चरणों में पूरा होगा प्लांट, 21.5 टन प्रतिदिन CNG उत्पादन का लक्ष्य इस बायो-CNG प्लांट को दो चरणों में विकसित किया जाएगा। पहले चरण में दो डाइजेस्टर लगाए गए हैं, जो 200 टन गीले कचरे से प्रतिदिन 8.9 टन गैस का उत्पादन करेंगे। दूसरे चरण में शेष 13.2 टन बायो-CNG का उत्पादन किया जाएगा। इस परियोजना से हर साल लगभग 56700 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी। यह प्लांट न केवल लैंडफिल में जाने वाले कचरे को घटाएगा, बल्कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करके वायु गुणवत्ता सुधार की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा।
रोजगार और आर्थिक विकास को मिलेगा प्रोत्साहन इस प्लांट के संचालन से लगभग 200 लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। 40 लोग सीधे प्लांट में कार्यरत होंगे जबकि 150 से अधिक लोग अप्रत्यक्ष रूप से इसमें शामिल होंगे। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी।