लखनऊ में 100 करोड़ का फर्जी समायोजन मामला: एलडीए ने खुद किया था खुलासा, दो साल बाद भी जांच अधूरी, अब फिर बनी कमेटी

इस बार जांच समिति की अध्यक्षता संयुक्त सचिव अर्जुन सुनील प्रताप सिंह कर रहे हैं। समिति में तहसीलदार अमित त्रिपाठी और अधिशासी अभियंता (जोन 1) अजीत कुमार को भी शामिल किया गया है।
नदी की जमीन को बना दिया आवासीय
यह पूरा मामला ग्राम मलेशेमऊ की उस जमीन से जुड़ा है जिसे वर्ष 2000 में अमर शहीद पथ, गोमती नगर विस्तार योजना के अंतर्गत अधिग्रहित किया गया था। गांव की 1146.75 एकड़ जमीन में खसरा संख्या-673क भी शामिल थी, जो कि गोमती नदी के क्षेत्र में आती थी। इसी कारण इसे अधिग्रहण में शामिल नहीं किया गया।
लेकिन एलडीए के अर्जन अनुभाग में तैनात अफसरों और कर्मचारियों ने राज गंगा डेवलपर्स के साथ साठगांठ कर जमीन के एक हिस्से को नदी में समाहित दिखा दिया और दूसरे हिस्से को एलडीए के कब्जे में।
राज गंगा डेवलपर्स को कैसे मिली जमीन?
जांच में पता चला कि यह जमीन महादेव प्रसाद के नाम थी, जिन्होंने 9 जनवरी 2006 को इसे राज गंगा डेवलपर्स को बेच दिया। इसके बाद बिल्डर ने 30 अक्टूबर 2006 को एलडीए को पत्र लिखकर 6070 वर्गमीटर जमीन के बदले उतनी ही अविकसित जमीन देने की मांग की।
एलडीए ने 12 जनवरी 2007 को इस मांग को मानते हुए गोमती नगर विस्तार योजना के सेक्टर-4 में 6070 वर्गमीटर जमीन आवंटित कर दी। इसके बदले सिर्फ 25 लाख रुपए का बाह्य विकास शुल्क जमा कराया गया।
जांच शुरू हुई, लेकिन अधूरी रह गई
इस घोटाले की जांच के लिए तत्कालीन वीसी डॉ. इन्द्रमणि त्रिपाठी ने सचिव पवन गंगवार को जिम्मेदारी दी थी। लेकिन जांच अधिकारी और आदेश देने वाले दोनों का तबादला हो गया, और जांच फाइलों में ही दबी रह गई।
2015 में हुई रजिस्ट्री, फिर खुला खेल
8 मई 2015 को तत्कालीन वीसी ने पुराने भुगतान को समायोजित करते हुए जमीन की रजिस्ट्री की अनुमति भी दे दी। इसके बाद डेवलपर ने 25 अगस्त 2015 को 84.98 लाख रुपए जमा कर रजिस्ट्री करा ली।
राज गंगा डेवलपर्स को गोमती नगर विस्तार योजना के सेक्टर-4 में शहीद पथ के पास 18 मीटर चौड़ी सड़क पर ग्रुप हाउसिंग और व्यवसायिक उपयोग के लिए भूखंड दे दिए गए।
जांच में फर्जीवाड़ा पकड़ा गया, भूखंड निरस्त
शिकायत के आधार पर जब दोबारा जांच हुई तो फर्जीवाड़ा उजागर हो गया। एलडीए ने कार्रवाई करते हुए भूखंड संख्या 1269A, 1269B, 1269C, 1269D और 1269E का समायोजन निरस्त कर दिया। इन भूखंडों की मौजूदा बाजार कीमत करीब 100 करोड़ आंकी गई है।