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ट्रम्प के लॉटरी आश्चर्य पर एच-1बी वीजा: क्या भारतीयों को अमेरिकी सपना छोड़ना पड़ेगा?

ट्रम्प कार्यकाल में H-1B वीज़ा प्रोग्राम का प्रभाव

H-1B वीज़ा प्रोग्राम लंबे समय से कुशल विदेशी कामगारों, विशेषकर भारतीयों के लिए, अमेरिका में प्रवेश करने और वहाँ की सशक्त अर्थव्यवस्था में योगदान देने का एक प्रमुख मार्ग रहा है। लेकिन, डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति कार्यकाल में प्रस्तावित बदलावों ने संभावित वीज़ा आवेदकों और उन पर निर्भर टेक उद्योगों के बीच अनिश्चितता और चिंता का माहौल पैदा कर दिया।

H-1B वीज़ा परिदृश्य को समझना

H-1B वीज़ा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कामगारों को “विशेषज्ञ पदों” (Specialty Occupations) पर नियुक्त करने की अनुमति देता है, जिनके लिए आमतौर पर स्नातक या उससे अधिक की डिग्री आवश्यक होती है। सूचना-प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य क्षेत्र जैसे सेक्टरों में कुशल कर्मियों की भारी मांग को देखते हुए यह प्रोग्राम कई नियोक्ताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा है।

ट्रम्प प्रशासन की इमिग्रेशन नीतियों में बदलाव के कारण H-1B वीज़ा का भविष्य सवालों के घेरे में आ गया। कड़े नियम और वीज़ा जारी करने पर सीमा लगाने की घोषणाओं ने खासकर भारतीय प्रवासी समुदाय को झटका दिया।

लॉटरी प्रणाली

H-1B वीज़ा प्रोग्राम का सबसे विवादास्पद पहलू उसकी लॉटरी प्रणाली रहा है। हर साल USCIS को उपलब्ध वीज़ाओं की संख्या से कई गुना ज़्यादा आवेदन प्राप्त होते हैं। इससे प्रतियोगिता बेहद तीव्र हो जाती है और आवेदकों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है।

न्यायसंगतता बढ़ाने के उद्देश्य से लॉटरी लागू की गई थी, लेकिन कई लोगों का मानना है कि इससे प्रक्रिया और उलझ गई और भारत जैसे देशों के आवेदकों को अधिक नुकसान हुआ। हाल ही में प्रस्तावित वेतन-आधारित चयन प्रणाली ने इन चिंताओं को और गहरा कर दिया है।

दूसरे देशों में नए अवसर

H-1B नियमों के कड़े होने के बीच कुछ देशों ने भारतीय प्रतिभाओं को आकर्षित करने का मौका लपक लिया। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे कुशल पेशेवरों के लिए वहाँ बसना आसान हुआ है। इससे अमेरिका की सख़्त नीतियों और इन देशों की स्वागतकारी नीतियों के बीच का अंतर साफ़ झलकता है।

ये देश सरल इमिग्रेशन प्रक्रिया, बेहतर रोज़गार अवसर और उच्च जीवनस्तर जैसी सुविधाएँ देकर भारतीय पेशेवरों को अपनी ओर खींच रहे हैं।

वेतन आधारित चयन पर बहस

ट्रम्प प्रशासन में एक बड़ा बदलाव वेतन-आधारित चयन प्रणाली का प्रस्ताव था। समर्थकों का कहना था कि इससे अमेरिका को शीर्ष प्रतिभा मिलेगी और कुशल कामगारों के साथ सस्ते श्रम जैसा अन्याय नहीं होगा। लेकिन आलोचकों का तर्क था कि इससे छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप्स अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा को नियुक्त करने से पीछे हट जाएंगे, जिससे नवाचार और रोज़गार सृजन पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

टेक उद्योग की प्रतिक्रिया

टेक उद्योग, जो H-1B कामगारों पर सबसे अधिक निर्भर है, ने इन बदलावों का जोरदार विरोध किया। उद्योग जगत का मानना है कि ऐसी नीतियाँ अमेरिका की तकनीकी और नवाचार में वैश्विक नेतृत्व की स्थिति को कमजोर कर सकती हैं।

कई कंपनियाँ अब विकल्प तलाश रही हैं — जैसे दूसरे देशों में ऑफिस खोलना या घरेलू प्रतिभा पर ज़ोर देना। लेकिन इससे अमेरिका में कुशल पेशेवरों की भारी कमी हो सकती है।

H-1B वीज़ा का भविष्य

हालाँकि चुनौतियाँ बहुत हैं, लेकिन H-1B वीज़ा के भविष्य पर चर्चाएँ लगातार जारी हैं। सुधार के पक्षधर संतुलित दृष्टिकोण की बात करते हैं जिसमें विदेशी कुशल कामगारों और घरेलू श्रमिकों दोनों के हितों का ध्यान रखा जाए।

आगे का ज़ोर एक पारदर्शी और प्रभावी प्रणाली बनाने पर होना चाहिए जो अमेरिका की आर्थिक ज़रूरतों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय पेशेवरों के योगदान को भी महत्व दे।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, H-1B वीज़ा प्रोग्राम का भविष्य अभी अधर में लटका है। भारतीय पेशेवरों और उनके परिवारों के सामने अपने जीवन और करियर से जुड़े कठिन निर्णय हैं। अमेरिकी नीतियों का असर केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक प्रतिभा बाज़ार को भी आकार देता है।

ये विकास स्पष्ट करते हैं कि इमिग्रेशन, अर्थव्यवस्था और श्रम बाज़ार आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। बदलाव चाहे चुनौतियाँ लाएँ, लेकिन वे नीतियों के पुनर्मूल्यांकन और सुधार का अवसर भी देते हैं।

अमेरिकी नीति निर्माताओं के लिए आवश्यक है कि वे एक न्यायपूर्ण प्रणाली विकसित करें जो विदेशी प्रतिभा के योगदान को मान्यता दे और साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को भी पूरा करे।

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