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सन 2050 तक विश्व की आधी जनसंख्या को चश्मे की आवश्यकता पड़ सकती है | बच्चों में मायोपिया (निकट दृष्टिदोष) बढ़ने के कारण | 2050 तक…

विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या को 2050 तक चश्मे की आवश्यकता हो सकती है: अध्ययन

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या को दृष्टि सुधारक चश्मे की आवश्यकता पड़ सकती है। भारत में भी यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है।

पिछले चार दशकों में, 5 से 15 वर्ष के बच्चों में मायोपिया (निकट दृष्टिदोष) के मामलों में 7.5% की वृद्धि दर्ज की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह दर पिछले दशक में 4.6% से बढ़कर 6.8% तक पहुँच गई है। केवल एक वर्ष में ही इस आयु वर्ग के बच्चों में मायोपिया के मामलों में 49% की बढ़ोतरी हुई है।

वैश्विक स्तर पर, वर्ष 2023 में 35.8% बच्चे और किशोर मायोपिया से प्रभावित थे, जो वर्ष 2050 तक बढ़कर 39% से अधिक हो सकते हैं।

बढ़ता हुआ स्क्रीन टाइम (मोबाइल, टीवी, लैपटॉप आदि का अत्यधिक उपयोग) इस स्थिति का प्रमुख कारण है। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आंकड़े अनुमान से कहीं अधिक भयावह हो सकते हैं, क्योंकि स्क्रीन टाइम के दीर्घकालिक प्रभावों को अभी पूरी तरह समझा नहीं गया है।


मायोपिया क्या है?

मायोपिया एक ऐसी नेत्र-दोष संबंधी समस्या है जिसमें दूर की वस्तुएँ धुंधली दिखाई देती हैं, जबकि पास की वस्तुएँ स्पष्ट दिखती हैं। इसे निकट दृष्टिदोष भी कहा जाता है। यह समस्या आँख की संरचना में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है।

बच्चों में यह समस्या प्रायः 6 से 14 वर्ष की आयु में प्रारंभ होती है और 20 वर्ष की आयु तक बनी रह सकती है। पहले यह दोष प्रायः किशोरावस्था में देखा जाता था, परंतु अब यह 5 से 10 वर्ष की आयु के छोटे बच्चों में तेजी से बढ़ रहा है। यदि इसे समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो यह उच्च मायोपिया (High Myopia) में बदल सकता है, जो दृष्टि के लिए गंभीर रूप से हानिकारक है।

यदि कोई बच्चा दूर की वस्तुएँ देखने में आँखें मिचकाता है या टीवी के बहुत पास बैठता है, तो यह मायोपिया का संकेत हो सकता है।


बच्चों में मायोपिया क्यों बढ़ रहा है?

आजकल बच्चे अधिकांश समय स्क्रीन पर निर्भर रहते हैं —
स्कूल में स्मार्ट बोर्ड, घर पर मोबाइल फोन, टीवी या होमवर्क के लिए लैपटॉप।

दिल्ली में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, जो बच्चे सप्ताह में सात घंटे से अधिक समय स्क्रीन पर बिताते हैं, उनमें मायोपिया का खतरा सामान्य बच्चों की तुलना में तीन गुना अधिक होता है।

शहरों के बच्चों में बाहरी खेल-कूद का समय बहुत घट गया है। इससे उन्हें सूर्य के प्राकृतिक प्रकाश का कम संपर्क मिलता है। बाहरी वातावरण में समय बिताने से रेटिना में डोपामाइन का स्राव होता है, जो आँखों की वृद्धि को संतुलित रखता है। किंतु अत्यधिक स्क्रीन टाइम यह संतुलन बिगाड़ देता है।

भारत में बढ़ते शहरीकरण ने भी इसमें भूमिका निभाई है — शहरी बच्चों में मायोपिया की दर ग्रामीण बच्चों की तुलना में अधिक पाई गई है।


आनुवंशिकता (Genetics) की भूमिका

मायोपिया का एक प्रमुख कारण आनुवंशिकता भी है। यदि माता या पिता में से किसी एक को मायोपिया है, तो बच्चे में इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।

फिर भी, वैज्ञानिकों का मानना है कि पर्यावरणीय कारण (जैसे जीवनशैली और स्क्रीन टाइम) अधिक प्रभावशाली हैं। हमारे पूर्वजों की जीवनशैली में बाहरी गतिविधियाँ अधिक थीं, जिससे उनकी दृष्टि स्वस्थ रहती थी। वर्तमान पीढ़ी की डिजिटल निर्भरता इस समस्या को बढ़ा रही है, जिसका असर आने वाली पीढ़ियों पर और गहरा हो सकता है।


मायोपिया के जोखिम कारक (Risk Factors)

  • यह दोष किसी भी आयु में हो सकता है, परंतु बच्चे और किशोर सबसे अधिक जोखिम में रहते हैं।

  • 6 से 20 वर्ष की आयु में आँखों का विकास होता है, इसलिए इस समय मायोपिया तेजी से बढ़ सकता है।

  • कम आयु में आरंभ हुआ मायोपिया तीव्र गति से बढ़ता है — विशेषकर यदि यह 10 वर्ष की आयु से पहले शुरू हो।

  • मधुमेह से ग्रस्त बच्चों में भी मायोपिया विकसित हो सकता है।

  • अत्यधिक दृश्य तनाव (Visual Strain), जैसे लगातार कंप्यूटर पर कार्य करना, अस्थायी मायोपिया को स्थायी बना सकता है।

  • बाहरी गतिविधियों की कमी एक प्रमुख कारण है — जो बच्चे बाहर कम खेलते हैं, उन्हें मायोपिया होने की संभावना अधिक रहती है।


क्या मायोपिया अंधत्व का कारण बन सकता है?

बाल्यावस्था में मायोपिया गंभीर प्रतीत नहीं होता, परंतु उम्र बढ़ने के साथ यह गंभीर नेत्र रोगों का कारण बन सकता है —
जैसे रेटिनल डिटैचमेंट, ग्लूकोमा, मोतीबिंदु और मायोपिक मैक्युलोपैथी, जो अंततः अंधत्व तक पहुँचा सकती है।

विकासशील देशों में मायोपिया प्रतिबंधनीय अंधत्व का एक प्रमुख कारण बन चुका है।
हर 1 डायॉप्टर की वृद्धि से मायोपिक मैक्युलोपैथी का खतरा 67% तक बढ़ जाता है।

यह बच्चों के जीवन-स्तर पर भी प्रभाव डालता है —
पढ़ाई में कठिनाई, खेलकूद में बाधा, आत्मविश्वास में कमी, और चश्मा या उपचारों से जुड़ा आर्थिक बोझ।
वैश्विक स्तर पर मायोपिया के कारण उत्पादकता का नुकसान 244 अरब डॉलर आँका गया है।
यदि इसे समय रहते नियंत्रित किया जाए तो जोखिम को 40% तक घटाया जा सकता है।


मायोपिया की पहचान कैसे करें?

अधिकांश बच्चों में इसके लक्षण बहुत सूक्ष्म होते हैं, इसलिए नियमित नेत्र परीक्षण (Eye Check-up) आवश्यक है।
पहली जाँच 9 से 11 वर्ष की आयु में करानी चाहिए।
यदि परिवार में मायोपिया का इतिहास है, तो 2 वर्ष की आयु से ही जाँच प्रारंभ करें।

मुख्य जाँचें:

  • दृष्टि तीक्ष्णता (Visual Acuity Test)

  • अपवर्तन परीक्षण (Refraction)

  • पुतली और रेटिना की जाँच

  • आँखों की गति और दबाव मापन

नेत्र विशेषज्ञ आवश्यकतानुसार चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस की सलाह देंगे।


मायोपिया को कैसे नियंत्रित करें?

मायोपिया से घबराने की आवश्यकता नहीं है — इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

चिकित्सीय उपाय:

  • विशेष मायोपिया नियंत्रण लेंस (जैसे स्पेशल स्पैक्सल लेंस)

  • सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस

  • ऑर्थो-के लेंस (Orthokeratology)

  • एट्रोपिन आई ड्रॉप्स — जो बच्चों में मायोपिया की प्रगति को धीमा करते हैं।

जीवनशैली में परिवर्तन:

  • स्क्रीन टाइम घटाएँ।

  • 20-20-20 नियम अपनाएँ — हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें।

  • प्रतिदिन कम-से-कम 90 मिनट बाहर खेलें।

  • विटामिन A, C और ओमेगा-3 से भरपूर आहार लें (फल, सब्जियाँ, मछली आदि)।

  • धूम्रपान और निष्क्रिय जीवनशैली से बचें।


सामान्य प्रश्न (FAQ)

प्रश्न: बच्चों में मायोपिया क्यों बढ़ रहा है?
उत्तर: बढ़ते स्क्रीन टाइम, कम बाहरी गतिविधियों और बदलती जीवनशैली के कारण मायोपिया में तेजी से वृद्धि हो रही है। अनुमानतः हर वर्ष लगभग 49% बच्चों में मायोपिया के नए मामले सामने आते हैं।

प्रश्न: यदि कोई लक्षण न हों तो कैसे पता चलेगा?
उत्तर: इसके लिए बच्चों की नियमित नेत्र-जाँच आवश्यक है। जब बच्चा 6 वर्ष का हो जाए, तब से नियमित रूप से उसकी दृष्टि की जाँच कराते रहें।

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