
1. शुरुआत – जैसे मैच का आगाज़
जयपुर की वह शाम आज भी याद है। दीपों की रौशनी, संगीत की मधुर धुनें और लोगों के चेहरों पर चमक – सब कुछ किसी बड़े टूर्नामेंट के शुरुआती क्षणों जैसा था।
अग्रवाल समाज महासभा राजस्थान द्वारा आयोजित दीपावली मिलन समारोह के लिए तैयारियाँ कई दिनों से चल रही थीं। जैसे कोई टीम मैच से पहले रणनीति बनाती है, वैसे ही हर सदस्य अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभा रहा था।
मुझे लगा मानो हम सब एक टीम का हिस्सा हैं, और यह आयोजन हमारा “फाइनल मैच” है।
2. आयोजन का माहौल – ऊर्जा से भरा मैदान
कार्यक्रम शुरू हुआ तो सभागार में जोश की लहर दौड़ गई।
मुख्य अतिथि भाजपा के जिला अध्यक्ष अमित गोयल, सीताराम अग्रवाल, पंकज गोयल और राजेंद्र महार जैसे गणमान्य लोग मंच पर उपस्थित थे।
उनका स्वागत जिस आत्मीयता से हुआ, वह किसी कप्तान के मैदान में उतरने जैसा था।
चारों ओर तालियों की गूंज थी, जैसे दर्शक दीर्घा में जयघोष हो रहा हो।
समाज के वरिष्ठ पदाधिकारी — सोमप्रकाश गर्ग, राम किशोर अग्रवाल, संदीप गोयल, अशोक जी (टस्कोला वाले), पवन गोयल, केदारनाथ अग्रवाल और मुक्तिलाल अग्रवाल — सब एक टीम की तरह तालमेल में कार्य कर रहे थे।
3. नेतृत्व की भूमिका – कोच और कप्तान साथ-साथ
हमारे “कोच” कहे जाने वाले विनोद गोयल, जो प्रदेश अग्रवाल महासभा राजस्थान के अध्यक्ष हैं, ने कार्यक्रम का नेतृत्व किया।
उनके भाषण में वही दृढ़ता थी जो एक कप्तान की रणनीति में होती है — “जब तक हम एकजुट रहेंगे, समाज की जीत तय है।”
महामंत्री माखनलाल कांडा ने भी युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि हर आयोजन केवल उत्सव नहीं, बल्कि सीख का अवसर होता है।
यह देखकर मन में गर्व की अनुभूति हुई कि समाज का नेतृत्व केवल परंपराओं तक सीमित नहीं, बल्कि आधुनिक सोच और संगठनात्मक दृष्टि से भी आगे बढ़ रहा है।
4. भावनात्मक पल – मैन ऑफ द मैच जैसा जन्मोत्सव
कार्यक्रम के बीच जब समाज के सम्मानित सदस्य प्रदीप जी अग्रवाल का जन्मोत्सव मनाया गया, तो पूरा सभागार खुशियों से गूंज उठा।
फूलों, शुभकामनाओं और गीतों के बीच जब सबने मिलकर केक काटा, तो वह पल ऐसा लगा मानो हमारी टीम ने कोई बड़ी जीत हासिल की हो।
वह एकता, वह उत्साह – जैसे किसी विजेता टीम का ट्रॉफी लिफ्ट करने का क्षण हो।
5. दीपों की रोशनी – विजय का प्रतीक
कार्यक्रम के अंत में दीप जलाए गए।
हर दीपक उस मेहनत, समर्पण और प्रेम का प्रतीक था जो समाज के हर सदस्य ने इस आयोजन में लगाया था।
जब सबने साथ में दीपक थामा, तो लगा जैसे “विजय मशाल” जल उठी हो — समाज की एकता और उज्ज्वल भविष्य की निशानी के रूप में।
6. अंत – खेल की तरह जीवन का सबक
इस दीपावली मिलन ने सिखाया कि समाज भी एक टीम की तरह होता है।
कुछ सदस्य योजना बनाते हैं, कुछ मैदान में दौड़ते हैं, कुछ रणनीति तय करते हैं, लेकिन अंत में सबकी मेहनत मिलकर समाज की जीत बनती है।
आज भी जब उस आयोजन की याद आती है, तो मन में यही भावना जगती है —
“हम सब खिलाड़ी हैं, और हमारा लक्ष्य एक ही है — समाज की जीत।”




