
मोहन भागवत के हालिया वक्तव्य ने भारतीय समाज में बदलती धारणा और विचारधारा के विस्तार के बीच एक गहरी कड़ी को उजागर किया है। उन्होंने कहा कि एक समय था जब लोग आरएसएस के काम पर हंसते थे। संघ की शाखाएं, उसका अनुशासन, दैनिक दिनचर्या और समाज के विभिन्न पहलुओं में उसका हस्तक्षेप कई लोगों को असामान्य या अनावश्यक लगता था। लेकिन आज स्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। समाज में संघ की स्वीकार्यता पहले के मुकाबले बहुत बढ़ गई है, और यह स्वीकार्यता केवल प्रचार या लोकप्रियता के कारण नहीं, बल्कि संघ के कार्यों के वास्तविक प्रभाव के कारण है।
भागवत के शब्द—“संघ ऐसे ही समझ में नहीं आता, इसे समझने के लिए प्रत्यक्ष अनुभूति की आवश्यकता होती है”—इस परिवर्तन को समझने की कुंजी हैं। संघ का विचार, उसकी पद्धति और उसका उद्देश्य केवल बाहरी नजर से नहीं समझा जा सकता। इसके लिए आवश्यक है कि व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से उसकी गतिविधियों से जुड़े या कम से कम उन्हें नजदीक से देखे। यह अनुभव ही वह धागा है जो समाज की मानसिकता को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विचारधारा का विस्तार : आलोचना से स्वीकार्यता तक
किसी भी विचारधारा की यात्रा आसान नहीं होती। विशेषकर वह विचारधारा जो समाज में गहरे परिवर्तन लाने का लक्ष्य रखती हो। आरएसएस की विचारधारा भी ऐसी ही है। संघ न केवल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करता है, बल्कि वह भारतीय समाज की संरचना, आचार-विचार, नैतिक मूल्यों और समरसता पर भी व्यापक दृष्टि रखता है।
शुरुआत में लोग इस विचारधारा को संदेह की नजर से देखते थे। कई लोग इसे संकुचित सोच या वैचारिक आग्रह का प्रतीक मानते थे। आलोचना भी खूब हुई। संघ के कार्यक्रमों, शाखाओं और अनुशासन को लेकर भी उपहास होता था। लेकिन धीरे-धीरे जब समाज को यह समझ आने लगा कि संघ केवल सिद्धांतों की बात नहीं करता बल्कि जमीन पर काम करता है, तब स्वीकार्यता बढ़ने लगी।
सेवा कार्यों, शिक्षा, संस्कार, प्राकृतिक आपदाओं में relief operations, समाज के कमजोर वर्गों में काम—इन सभी ने उस धारणा को बदल दिया जो कभी उपहास का कारण बनती थी। विचारधारा का विस्तार तभी सफल होता है जब उसका प्रभाव समाज में महसूस किया जाए। संघ ने यह काम निस्वार्थ भाव से किया।
सामाजिक बदलाव : जमीनी कार्यों की नींव
विचारधारा का विस्तार तभी संभव है जब समाज में वास्तविक बदलाव दिखाई दे। संघ की खासियत यही है कि उसने केवल भाषणों या नारों के माध्यम से नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष कार्यों के माध्यम से सामाजिक बदलाव का मार्ग प्रशस्त किया।
आज देशभर में हजारों स्थानों पर संघ के स्वयंसेवक शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, जन-जागरण, पर्यावरण संरक्षण और सेवा गतिविधियों में सक्रिय हैं। ये गतिविधियाँ न तो प्रचार के लिए होती हैं और न ही किसी राजनीतिक लक्ष्य के लिए। उनका उद्देश्य केवल समाज की भलाई है।
जब समाज इन कार्यों को नजदीक से देखता है, तब उसकी धारणा बदलती है। जो कभी प्रश्न या उपहास का विषय था, वह अब प्रशंसा का पात्र बन जाता है। यह बदलाव विचारधारा के विस्तार का सबसे बड़ा संकेत है।
प्रत्यक्ष अनुभूति का महत्व
भागवत ने अपने भाषण में स्पष्ट कहा कि संघ को समझने के लिए प्रत्यक्ष अनुभूति आवश्यक है। यह कथन एक गहरे सिद्धांत की ओर संकेत करता है—कि वास्तव में किसी भी विचार या संगठन का मूल्यांकन अनुभव के आधार पर होना चाहिए, न कि पूर्वाग्रहों के आधार पर।
आज भी कई लोग संघ के बारे में केवल सुनी-सुनाई बातें जानते हैं। लेकिन जो लोग शाखाओं में जाते हैं, स्वयंसेवकों से जुड़ते हैं, या संघ के सेवा कार्यों को देखते हैं, उनकी सोच स्वाभाविक रूप से बदल जाती है। यह प्रत्यक्ष अनुभूति विचारधारा को केवल सिद्धांत नहीं बल्कि जीवन का अंग बना देती है।
युवाओं के लिए संदेश : दिशा और धैर्य की आवश्यकता
विचारधारा का विस्तार केवल बुज़ुर्गों या अनुभवी लोगों की जिम्मेदारी नहीं है। युवाओं को इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभानी है। आज भारत युवा शक्ति का देश है। संघ इस युवा शक्ति को दिशा देने का कार्य करता है।
मोहन भागवत ने युवाओं से आह्वान किया कि राष्ट्र निर्माण केवल सरकारों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। जिस दिन समाज जागरूक हो जाएगा और युवाओं में जिम्मेदारी का भाव आएगा, राष्ट्र अपने आप आगे बढ़ने लगेगा।
संघ यह मानता है कि युवाओं में अनुशासन, चरित्र, धैर्य और सेवा की भावना विकसित होनी चाहिए। शाखाएं, बौद्धिक विचार-विमर्श, सामाजिक संपर्क—ये सभी तत्व युवा मन को सकारात्मक दिशा देने में सहायक होते हैं।
जयपुर कार्यक्रम : समर्पित जीवन का प्रेरक संदेश
जयपुर में हुए ग्रंथ “और यह जीवन समर्पित” के विमोचन समारोह में भागवत ने दिवंगत प्रचारकों के जीवन पर भी चर्चा की। ये प्रचारक वह लोग थे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
उनका जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा है क्योंकि उन्होंने बिना किसी स्वार्थ, बिना किसी प्रसिद्धि की इच्छा के, केवल कर्तव्यभाव से कार्य किया। उनकी जीवनयात्रा यह साबित करती है कि यदि व्यक्ति में धैर्य और त्याग हो, तो वह अकेला भी समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है।
विचारधारा का भविष्य : समाज की स्वीकार्यता और सकारात्मकता
आज समाज में संघ की स्वीकार्यता बढ़ रही है। यह स्वीकार्यता संघ की विचारधारा के प्रसार और उसके कार्यों की सत्यता का प्रमाण है। भविष्य में यह भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो सकती है क्योंकि समाज तेजी से बदल रहा है, चुनौतियाँ बढ़ रही हैं और युवाओं से उम्मीदें भी बढ़ रही हैं।
संघ की विचारधारा सामाजिक समरसता, नैतिक मूल्यों, अनुशासन और राष्ट्रभावना पर आधारित है। यह विचारधारा आने वाले समय में देश को नई दिशा दे सकती है, बशर्ते समाज इसे केवल शब्दों में नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष अनुभूति से समझे।
निष्कर्ष
मोहन भागवत का संदेश केवल संघ तक सीमित नहीं है। यह व्यापक सामाजिक परिवर्तन की ओर संकेत करता है। पहले लोग संघ के कार्य पर हंसते थे, आज स्वीकार्यता बढ़ रही है—यह बदलाव विचारधारा की शक्ति और समाज के अनुभवों का परिणाम है।
युवाओं के लिए यह संदेश है कि राष्ट्र निर्माण और सामाजिक बदलाव किसी एक संस्था का काम नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक यात्रा है। यदि युवा दिशा, अनुशासन और समर्पण के साथ आगे बढ़ें, तो विचारधारा स्वतः विस्तार पाती है और समाज सकारात्मक परिवर्तन की ओर बढ़ता है।




