सम्पादकीय

18 करोड़ का विकास प्लान खारिज, मंदिर संपत्ति पर सरकार का दावा अस्वीकार

मंदिर की संपत्ति सरकार का खजाना नहीं: अदालत का ऐतिहासिक फैसला

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के मंडफिया सिविल कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि मंदिर की संपत्ति को सरकार के खजाने की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अदालत ने सांवलिया सेठ मंदिर बोर्ड द्वारा वर्ष 2018 में मातृकुंडिया तीर्थ स्थल के विकास के लिए जारी किए गए 18 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को अमान्य घोषित कर दिया। यह फैसला धार्मिक संस्थानों की वित्तीय स्वतंत्रता और कानूनी संरक्षण से जुड़ा हुआ एक महत्त्वपूर्ण निर्णय माना जा रहा है।


18 करोड़ रुपये का प्रस्ताव हुआ रद्द

सांवलिया सेठ मंदिर बोर्ड ने 12 अप्रैल 2018 को मातृकुंडिया तीर्थ स्थल के सौंदर्यीकरण एवं विकास के लिए 18 करोड़ रुपये जारी करने का फैसला लिया था। इस राशि को मंदिर के कोष से खर्च करने की मंजूरी बोर्ड द्वारा दी गई थी, लेकिन एक याचिका के बाद इस प्रस्ताव की वैधता पर सवाल उठे। कोर्ट ने इस प्रस्ताव को कानूनी रूप से अवैध बताते हुए तुरंत प्रभाव से इसे रद्द कर दिया।


मंदिर बोर्ड को दो माह में वापस करना होगा धन

अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि यदि उक्त राशि मंदिर बोर्ड या किसी अन्य सरकारी खाते में पहले से जारी या ट्रांसफर की गई है, तो उसे दो महीने के भीतर वापस मंदिर बोर्ड के खाते में जमा कराया जाए। अदालत ने यह भी कहा कि मंदिर की धनराशि का उपयोग केवल धार्मिक, प्रशासनिक और भक्तों के हित में ही किया जा सकता है, न कि सरकारी विकास परियोजनाओं के लिए।


मंदिर बोर्ड अध्यक्ष और सीईओ पर लगाई रोक

अदालती आदेश में एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही गई कि सांवलिया सेठ मंदिर बोर्ड के अध्यक्ष और सीईओ अब इस प्रस्तावित परियोजना पर कोई भी वित्तीय खर्च नहीं कर सकते। कोर्ट ने इनके खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) जारी की है, जिससे वे मंदिर के कोष से इस योजना के लिए किसी भी प्रकार की राशि जारी नहीं कर पाएंगे।


कानून की धारा 28 का उल्लंघन बताया

कोर्ट ने अपने विस्तृत निर्णय में यह स्पष्ट किया कि मंदिर बोर्ड की ओर से जारी किया गया प्रस्ताव सांवलिया मंदिर बोर्ड अधिनियम, 1992 की धारा 28 का स्पष्ट उल्लंघन था। इस धारा के अनुसार, मंदिर के कोष से केवल मंदिर की धार्मिक, आध्यात्मिक और भक्तों की सुविधाओं से जुड़ी गतिविधियों पर ही खर्च किया जा सकता है। विकास योजनाओं के नाम पर बड़े पैमाने पर धन जारी करना इस अधिनियम के विपरीत बताया गया।


धार्मिक कोष की सुरक्षा को मिली कानूनी मजबूती

इस आदेश के बाद धार्मिक स्थलों और मंदिरों की संपत्ति को लेकर एक बड़ा संदेश पूरे प्रदेश और देश के लिए गया है। अदालत ने कहा कि मंदिर की संपत्ति जनता की आस्था पर आधारित होती है, इसलिए इसे सरकारी खजाने की तरह इस्तेमाल करना उचित नहीं है। यह फैसला न केवल सांवलिया सेठ मंदिर बल्कि देशभर के धार्मिक संस्थानों के लिए एक मिसाल बन सकता है।


भविष्य के लिए नया मार्गदर्शन

अदालत के इस निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि आगे से किसी भी धार्मिक बोर्ड या सरकारी संस्था को मंदिर की धनराशि का उपयोग करने से पहले कानून, पारदर्शिता और आस्था—तीनों का सम्मान करना होगा। यह फैसला प्रशासनिक कार्यों में जवाबदेही बढ़ाएगा और धार्मिक निधियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।


निष्कर्ष:
मंडफिया सिविल कोर्ट का यह निर्णय धार्मिक संस्थानों की वित्तीय स्वतंत्रता और आस्था की रक्षा की दिशा में एक बड़ी पहल माना जा रहा है। इस फैसले ने यह संदेश दिया है कि मंदिर की संपत्ति केवल भक्तों की सेवा, धार्मिक संरक्षण और आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए है—न कि किसी सरकारी विकास या अन्य परियोजनाओं के लिए।

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