‘केवल जाति का होने से SC-ST एक्ट नहीं लगता’, राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा- अपराध के पीछे मंशा देखना जरूरी

राजस्थान हाई कोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा केवल तभी लागू हो सकती है जब अपराध आइपीसी के तहत
HighLights
- कोर्ट ने स्पष्ट कहा- अपराध के पीछे मंशा देखना जरूरी
- अदालत ने तीन भाइयों को एससी-एसटी एक्ट के आरोपों से बरी किया
उदयपुर। राजस्थान हाई कोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा केवल तभी लागू हो सकती है जब अपराध आइपीसी के तहत 10 साल या उससे अधिक की सजा वाला हो और अपराध जातिगत विद्वेष के कारण किया गया हो।
जस्टिस फरजद अली की एकल पीठ ने प्रतापगढ़ के 30 साल पुराने मामले में तीन भाइयों को एससी-एसटी एक्ट के आरोपों से बरी किया, लेकिन अतिक्रमण के मामले में दोषी माना।
कोर्ट ने दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए कहा कि अपीलार्थी अब वृद्ध हो चुके हैं और 30 साल से अधिक समय बीत चुका है। पुराने जेल का समय पर्याप्त सजा माना जाएगा।
30 साल पुराना जमीन विवाद
उदयपुर संभाग में प्रतापगढ़ के सेलारपुरा निवासी कालू, रुस्तम और वाहिद खान ने 1995 में ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। अभियोजन के अनुसार, परिवादी ने आरोप लगाया कि आरोपितों ने उसकी जमीन पर अतिक्रमण किया और मारपीट की। हाई कोर्ट ने पाया कि विवाद केवल पगडंडी के रास्ते को लेकर था, न कि जातिगत भावना से प्रेरित
एससी-एसटी एक्ट लागू करने के लिए दो शर्तें अनिवार्य
जस्टिस फरजद अली ने लिखा कि एससी-एसटी एक्ट लागू करने के लिए दो शर्तें अनिवार्य हैं। आइपीसी के तहत किया गया अपराध जिसमें 10 साल या अधिक की सजा का प्रावधान हो और अपराध जातिगत पहचान के कारण किया गया हो। कोर्ट ने नोट किया कि अतिक्रमण की धारा 447 के तहत अधिकतम सजा केवल तीन महीने की है इसलिए एससी-एसटी एक्ट की धारा लागू नहीं हो सकती।




