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लंदन से ‘तौबा’, रईसों का पलायन: अरबपतियों ने क्यों छोड़ीं अपनी कोठियां और अब कौन बन रहा नया मालिक?

लंदन में रईसों का पलायन जारी है, जिसमें अरबपतियों ने अपनी कोठियां छोड़ दी हैं। आर्थिक कारणों और बदलते वैश्विक निवेश के माहौल के कारण वे लंदन से दूर जा रहे हैं। अब सवाल यह है कि इन शानदार संपत्तियों का नया मालिक कौन बनेगा और लंदन के रियल एस्टेट बाजार पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।

 ब्रिटेन ने 200 साल से भी ज्यादा पुराने टैक्स नियम ‘नॉन-डॉम’ (Non-Dom) को इसी साल अप्रैल में खत्म कर दिया। इसके बाद से लंदन का रियल एस्टेट नक्शा तेजी से बदल रहा है। विदेशी मूल के कई सुपर-रिच अब ब्रिटेन छोड़ रहे हैं। टैक्स से बचने के लिए ये अमीर अपनी करोड़ों की कोठियां बेचकर दुबई, अबू धाबी, मिलान, मोनाको और जिनेवा जैसे टैक्स-फ्रेंडली शहरों का रुख कर रहे हैं।

दूसरी ओर, लंदन में लगातार खाली हो रही महंगी कोठियों और लग्जरी बंगलों के नए खरीदारों की सूची में भारतीय और पाकिस्तानी मूल के रईस सबसे ऊपर हैं। भारत और पाकिस्तान के नए रईसों के अलावा अरब देशों, अमेरिका, चीन, यमन और लेबनान से आए करोड़पति भी इन कोठियों और लग्जरी बंगलों को खरीदने के लिए आगे आ रहे हैं। ये लोग लंदन की प्रॉपर्टी में भारी निवेश कर रहे हैं। इनमें से कई ने टेक्नोलॉजी सेक्टर से दौलत कमाई है, जबकि कुछ सीधे तौर पर रॉयल फैमिली से जुड़े हुए हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2025 में करीब 181 करोड़ रुपये या उससे ज्यादा कीमत वाले 65 प्रतिशत बंगले उन्हीं नॉन-डॉम्स ने बेचे हैं, जो टैक्स नियमों में बदलाव के बाद टैक्स से बचने के लिए ब्रिटेन छोड़ रहे हैं।

लंदन में भारतीय कारोबारियों का क्या?

भारतीय मूल के अरबपति अमरवीर सिंह पन्नू ने लंदन के पॉश इलाके हैम्पस्टेड में 16.4 मिलियन पाउंड (करीब 172 करोड़ रुपये) की एक कोठी खरीदी है। पन्नू इस कोठी को 50 लग्जरी अपार्टमेंट्स में तब्दील करने की योजना बना रहे हैं।

इन अमीरों ने छोड़ा ब्रिटेन

लक्ष्मी मित्तल 

टैक्स कानूनों में बदलाव के बाद पिछले महीने भारतीय मूल के स्टील कारोबारी लक्ष्मी मित्तल ने अपना टैक्स रेजिडेंस ब्रिटेन से हटाकर स्विट्जरलैंड शिफ्ट कर लिया है। उनके अलावा कई अन्य भारतीय कारोबारी भी ब्रिटेन छोड़ने की तैयारी में हैं।

Lakshmi Mittal UK

 

बता दें कि लक्ष्मी मित्तल दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्टील कंपनी आर्सेलर मित्तल के मालिक हैं और ब्रिटेन के शीर्ष अरबपतियों में शामिल रहे हैं। द संडे टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, लेबर पार्टी की नई सरकार अमीरों पर टैक्स बढ़ाने की तैयारी में है, जिसके चलते मित्तल ने यह फैसला लिया। भारतवंशी मित्तल की कुल संपत्ति करीब 1.8 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है। वे ब्रिटेन के आठवें सबसे अमीर व्यक्ति रहे हैं।

रियो फर्डिनांड

लंदन के पूर्व फुटबॉलर रियो फर्डिनांड ने डुबई शिफ्ट कर लिया है और टैक्स की वजह से ब्रिटेन छोड़ने का एक कारण बताया गया है।

नसेफ साविरिस

एस्टन विला फुटबॉल क्लब के सह-मालिक और अरबपति नसेफ साविरिस ने इटली छोड़कर यूएई शिफ्ट कर लिया है। उन्‍होंने कहा कि उनके सर्कल के लोग भी इसी बदलाव पर विचार कर रहे हैं।

हरमन नारुला

नए टैक्स प्रस्तावों से पहले अपने टैक्स बोझ को कम करने की योजना के तहत भारतीय मूल के इम्प्रॉबेबल नाम के टेक कंपनी के संस्थापक  हरमन नरुला ने भी दुबई का रुख किया।

निक स्टोरोंस्की

रेवोलूट के को-फाउंडर निक स्टोरोंस्की यूएई शिफ्ट हो चुके हैं, ताकि कैपिटल गेन्स टैक्स का भारी-भरकम बिल न देना पड़े।

ब्रिटेन में लग्जरी प्रॉपर्टी के दाम 20% उछले

  • 2025 में 41 प्रॉपर्टीज बिकीं, जिनकी कुल कीमत करीब 12 हजार करोड़ रुपये रही।
  • 2024 में यही आंकड़ा लगभग 10 हजार करोड़ रुपये था।

रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि नए खरीदार साल के ज्यादातर समय इन घरों में नहीं रहेंगे। इससे बेलग्रेविया, नाइट्सब्रिज और मेफेयर जैसे महंगे इलाकों में घर खाली रहने का खतरा बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे लंदन की वैश्विक प्रतिस्पर्धा और आर्थिक सेहत पर भी असर पड़ सकता है।

क्या इससे ब्रिटेन की इकोनॉमी को होगा नुकसान?

ब्रिटेन सरकार का यह फैसला अब उल्टा सिरदर्द बनता नजर आ रहा है। मित्तल जैसे उद्योगपति सिर्फ भारी-भरकम टैक्स ही नहीं देते, बल्कि रोजगार के अवसर और बड़ा निवेश भी लेकर आते हैं। लेबर पार्टी की इस नीति से अमीर तबके के देश छोड़ने का खतरा बढ़ गया है। नतीजतन, कई अंतरराष्ट्रीय कारोबारी अब ब्रिटेन से अपना बोरिया-बिस्तर समेटने पर विचार कर रहे हैं।

सरकार का तर्क है कि इससे कर्ज का बोझ कम होगा और वेलफेयर योजनाओं को मजबूती मिलेगी, लेकिन आलोचकों की चेतावनी है कि अगर पूंजी और निवेश बाहर चला गया, तो इसका सीधा झटका ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को लग सकता है।

नॉन-डॉम नियम क्या था?

यूके का नॉन-डॉम नियम एक पुराना टैक्स प्रावधान था, जो करीब 200 साल से भी ज्यादा समय तक लागू रहा। इसका फायदा उन लोगों को मिलता था, जिनकी जड़ें किसी दूसरे देश में थीं, लेकिन वे यूके में रह रहे थे।

इस नियम के तहत, अगर किसी व्यक्ति की कमाई या मुनाफा विदेश में होता था, तो उस पर यूके में तब तक टैक्स नहीं लगता था, जब तक वह पैसा ब्रिटेन में नहीं लाया जाता था। यानी पैसा बाहर रहा, तो टैक्स से बाहर रहा, इसे ही ‘रिमिटेंस बेसिस’ कहा जाता था।

इतना ही नहीं, यह नियम अमीर विदेशियों के लिए एक तरह की टैक्स ढाल भी था, क्योंकि इससे उनकी विदेशी संपत्ति पर विरासत कर (Inheritance Tax) से भी काफी हद तक बचाव हो जाता था।

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