प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश

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shree ganesha

श्री गणेशाय नमः

भगवान श्री गणेश प्रथम पूज्य हैए उन्हें विघ्नहर्ता, सिद्धिविनायक, दुःखहर्ता, विघ्नविनाशक आदि कई नामों से पुकारा जाता है, माँ आदिशक्ति द्वारा सृजित भगवान श्री गणेश केवल उनके पुत्र ही नहीं वरण साक्षात परम ब्रह्म परमात्मा है। भगवान श्री गणेश को प्रसन्न किये बिना कल्याण संभव नहीं। भगवान श्री गणेश की यह बड़ी अद्भुत विशेषता है कि उनका स्मरण करते ही सब विघ्न बाधाएं दूर हो जाती है और सब कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाते हैं।

स्तुति मंत्र :- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

भावार्थ – घुमावदार सूंड वाले विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।
मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)।।

जिनकी सूंड वक्र यानी की टेढ़ी है, जिनका शरीर विशालकाय है, जिनकी आभा करोड़ों सूर्यों से बढ़कर है। ऐसे भगवान श्री गणेश हमेशा ही मेरे सभी कार्यों को निर्विघ्न और सफलता पूर्वक सम्पन्न होने का आशीष प्रदान करें।

मंत्र का लाभ:-
हिंदू धर्म में किसी भी कार्य की शुरुआत करने से पहले गणेश जी के इस मंत्र का जाप किया जाता है। इस मंत्र के जाप से कार्य में सफलता मिलता है। ये मंत्र भगवान गणेश के उपासकों के लिए विशेष फलदायी होता है।

गण का अर्थ है समूह। यह पूरी सृष्टि परमाणुओं और अलग अलग ऊर्जाओं का समूह है। यदि कोई सर्वोच्च नियम इस पूरी सृष्टि के भिन्न-भिन्न संस्थाओं के समूह पर शासन नहीं कर रहा होता तो इसमें बहुत उथल-पुथल हो जाती। इन सभी परमाणुओं और ऊर्जाओं के समूह के स्वामी हैं गणेश जी। वे ही वह सर्वोच्च चेतना हैं जो सर्वव्यापी है और इस सृष्टि में एक व्यवस्था स्थापित करती है।

आदि शंकराचार्य जी ने गणेश जी के सार का बहुत ही सुंदरता से गणेश स्तोत्र में विवरण किया है। हालांकि, गणेश जी की पूजा हाथी के सिर वाले भगवान के रूप में होती है, लेकिन यह आकार या स्वरुप वास्तव में उस निराकारए परब्रह्म रूप को प्रकट करता है।

वे (अजं निर्विकल्पं निराकारमेकम) हैं। अर्थात, गणेश जी अजं (अजन्मे) हैं, निर्विकल्प (बिना किसी गुण के) हैं, निराकार (बिना किसी आकार के) हैं और वे उस चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी है। गणेश जी वही ऊर्जा हैं जो इस सृष्टि का कारण है। यह वही ऊर्जा है, जिससे सब कुछ प्रकट होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है।

भगवान श्री गणेश मानव शरीर में शक्ति स्त्रोत जो देवयान मार्ग – राजमार्ग – महामार्ग है जिस रास्ते मानव कैवल्यं धाम तक पहुंचता है, उस मार्ग का पहला विराम स्थल मूलाधार चक्र है। यह चक्र भगवती महामाया के साथ भगवान श्री गणेश अधिपति है, मूलाधार चक्र जहां मानव की समस्त शक्तियां सुसुप्त होती हैं उस चक्र का स्वामित्व श्री गणेश करते हैं, अतः बिना भगवान श्री गणेश जी पूजन साधना अनुष्ठान से चक्र की जागृति सम्भव नहीं। जो साधक भगवान श्री गणेश की स्तुति करता है, आराधना करता है, मन्त्रों का गायन करता है, तथा राग श्याम कल्याण मधुर संगीत में गायन करेगा मूलाधार चक्र को ऊर्जा प्रदान करेगा, तो निश्चित रूप से उस साधक का मूलाधार चक्र जागरण ही नहीं वरण भेदन सम्भव हो पायेगा।।

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