क्या सुलझ गईं पुरानी तनातनियां? सिंगूर विवाद के बाद ममता बनर्जी ने टाटा ग्रुप के चेयरमैन से की पहली मुलाकात।

इस संबंध में तृणमूल कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया. TMC ने अपने पोस्ट में कहा, “सीएम बनर्जी और टाटा समूह के अध्यक्ष के बीच बातचीत का केंद्र बिंदु था राज्य में टाटा समूह की मौजूदगी को और गहरा करना है.”
इस मुलाकात की तस्वीरें पोस्ट करते हुए तृणमूल कांग्रेस ने एक्स पर लिखा, “मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने टाटा संस और टाटा समूह के चेयरमैन नटराजन चंद्रशेखरन का स्वागत किया और बंगाल के औद्योगिक विकास व उभरते अवसरों पर एक रचनात्मक संवाद किया.”
तृणमूल कांग्रेस ने आगे कहा, “यह बैठक इनोवेशन, इनवेस्टमेंट और समावेशी विकास को आगे बढ़ाने वाली सार्थक सार्वजनिक और निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने की बंगाल की प्रतिबद्धता को दर्शाती है.”
आखिर क्या था ममता बनर्जी और टाटा समूह का विवाद?
दरअसल, ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में CPI (M) शासन के खिलाफ विधानसभा में, जनमत की अदालत में और सड़कों पर दशकों तक संघर्ष किया. लेकिन उनके संघर्ष का निर्णायक मोड़ तब आया जब उन्होंने पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा मोटर्स के प्लांट के लिए कथित जबरन भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया. वहीं, 2006 के यह आंदोलन और उसके अगले वर्ष नंदीग्राम में हुए इसी तरह के विरोध ने ममता बनर्जी को साल 2011 में पश्चिम बंगाल की सत्ता तक पहुंचाने वाले मुख्य कारण माना जाता हैं.
इससे पहले, 2008 में टाटा ग्रुप और टाटा मोटर्स के तत्कालीन अध्यक्ष रतन टाटा ने घोषणा की कि कंपनी उस प्लांट को गुजरात में स्थानांतरित कर रही है, जहां उनका सपना था कि उनके सस्ते कार नैनो का निर्माण हो. रतन टाटा ने इसके लिए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था, “मुझे लगता है कि ममता बनर्जी ने इसकी शुरुआत की.” इस पर ममता बनर्जी ने उस समय प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, “सिंगूर से टाटा के प्रोजेक्ट हटने के फैसले के लिए मुझे जिम्मेदार ठहराना दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणी है.”