“दुश्मनों को भी इंसान समझें, क्योंकि करुणा से ही मिल सकता है शांति का रास्ता” – दलाई लामा

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तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने एक लिखित संदेश में कहा कि युद्धों के कारण होने वाला दु:ख उन्हें व्यथित करता है. उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपने ‘कथित दुश्मनों’ को भी इंसान के रूप में देखें, क्योंकि ऐसी करुणा सबसे जटिल संघर्षों को भी शांतिपूर्ण तरीके से सुलझा सकती है.

चौदहवें दलाई लामा का छह जुलाई को 90वां जन्मदिन था. उन्होंने यह बात एक लिखित संदेश में कही, जिसे धर्मशाला से आए एक आदरणीय भिक्षु ने रविवार (13 जुलाई, 2025) को यहां आयोजित एक स्मृति समारोह में पढ़कर सुनाया.

90वें जन्मदिवस पर हुई ये चर्चा

भारत और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए विद्वान, शोधकर्ता और प्रतिष्ठित आध्यात्मिक नेता यहां एक दिवसीय सम्मेलन में एकत्र हुए, जो 14वें दलाई लामा के 90वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था. इस दौरान बुद्ध धर्म की प्रासंगिकता और पारंपरिक आचार-प्रथाओं व वैज्ञानिक प्रमाणों के बीच संबंध जैसे विषयों पर चर्चा की गई.

चौदहवें दलाई लामा की विरासत को समर्पित एक फिल्म का प्रदर्शन किया गया, वहीं आयोजन स्थल पर एक विशेष अस्थायी प्रदर्शनी भी लगाई गई. इस प्रदर्शनी में उनके बचपन की दुर्लभ श्वेत-श्याम तस्वीरें, 1950 के दशक में पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से उनकी मुलाकात की तस्वीरें और उनके जीवन की अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ी तस्वीरें प्रदर्शित की गई.

दलाई लामा ने की उत्सव की सराहना

आयोजन स्थल पर बुद्ध के जीवन और उनसे जुड़े विभिन्न स्थलों पर आधारित एक प्रदर्शनी भी लगाई गई. अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महासंघ (आईबीसी) की ओर से आयोजित इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में इस आयोजन के लिए भेजा गया 8 जुलाई की तिथि वाला एक लिखित संदेश समदोंग रिंपोछे की ओर से पढ़कर सुनाया गया.

दलाई लामा ने कहा, ‘एक साधारण बौद्ध भिक्षु होने के नाते मैं आमतौर पर जन्मदिन समारोहों पर अधिक ध्यान नहीं देता. हालांकि, आप इस अवसर का उपयोग करके दुनिया में करुणा, सौहार्द और परोपकार के महत्व को उजागर करने के लिए कर रहे हैं, इसलिए मैं अपनी सराहना व्यक्त करना चाहता हूं.’

भारत के साथ विशेष निकटता

उन्होंने अपने संदेश में कहा कि अब 66 से अधिक वर्ष हो चुके हैं, जब वे स्वयं और बड़ी संख्या में तिब्बती लोग ‘चीनी कम्युनिस्ट द्वारा तिब्बत पर आक्रमण’ के बाद भारत आने में सफल हुए थे. तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा कि तब से उन्हें प्राचीन भारतीय ज्ञान का अध्ययन जारी रखने की स्वतंत्रता और अवसर मिला है. दलाई लामा ने कहा, ‘मैं इस देश के साथ एक विशेष निकटता महसूस करता हूं.’

दलाई लामा ने कहा कि यदि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा, जिसमें बुद्ध की शिक्षाएं भी शामिल हैं, को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ा जाए तो यह दुनिया में ‘बड़े पैमाने पर शांति और सुख’ में सहायक हो सकती है. मैं प्रार्थना करता हूं कि दुनिया में अधिक शांति और समझ बढ़े. युद्ध के कारण इतनी बड़ी संख्या में लोगों को कष्ट में देखकर मुझे बहुत दुःख होता है.

युद्ध नहीं, शांतिपूर्ण समझौता है समाधान

उनकी यह टिप्पणी विश्व के विभिन्न हिस्सों में जारी युद्धों और संघर्षों की पृष्ठभूमि में आयी है. उन्होंने कहा, ‘अगर हम अपनी साझी मानवता को स्वीकार करें, यह समझें कि जिन्हें हम ‘कथित दुश्मन’ मानते हैं, वे भी इंसान हैं तो मैं वास्तव में मानता हूं कि हम सबसे कठिन संघर्षों का भी शांतिपूर्ण समाधान खोज सकते हैं, लेकिन इसके लिए संवाद और बातचीत की इच्छा जरूरी है.’

उन्होंने कहा, ‘मैं प्रार्थना करता हूं कि एक शांतिपूर्ण, अधिक करुणामयी और हिंसा रहित दुनिया बनाने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाएं. आज के समय में मुख्य भूमि चीन सहित चीनी जनता के बीच बौद्ध धर्म के प्रति रुचि बढ़ रही है.’

भारत और भारतीयों के प्रति आभार

दलाई लामा ने कहा कि वैज्ञानिक भी बौद्ध दर्शन और मन और भावनाओं के कार्य-प्रणाली पर बौद्ध दृष्टिकोण को जानने में रुचि रखते हैं. उन्होंने भारत और भारतीयों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘तिब्बती लोग भारत सरकार और जनता के प्रति 1959 से अब तक दिखाई गई गर्मजोशी और आतिथ्य के लिए अत्यंत आभारी हैं.’

उन्होंने कहा कि अंत में, मुझे लगता है कि मेरा जीवन दुनियाभर के लोगों के लिए कुछ लाभकारी रहा है और मैं अपना शेष जीवन दूसरों की सेवा में समर्पित करता हूं. अशोक होटल में आयोजित इस सम्मेलन में थाईलैंड, मलेशिया और अन्य बौद्ध देशों के बौद्ध भिक्षुओं सहित अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय बौद्ध भिक्षुओं ने भी भाग लिया.

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