दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने समाज, परिवर्तन और आदर्शों पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि 1942 और उसके बाद ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों से संघ का विस्तृत सर्वेक्षण करवाया था। उनके पास शाखाओं की संख्या, सदस्यों के नाम, पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की जानकारी, यहां तक कि शाखाओं में हुए भाषणों और गतिविधियों का पूरा रिकॉर्ड मौजूद था। कई कलेक्टरों ने अपनी टिप्पणियों में लिखा था कि भले ही संघ उस समय कोई उपद्रव नहीं कर रहा था, लेकिन भविष्य में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन में यह बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
भागवत ने कहा कि आदर्श सितारों की तरह होते हैं जिन्हें छू तो नहीं सकते, लेकिन उनकी रोशनी सही दिशा दिखाती है। उन्होंने बताया कि आदर्शों से प्रेरित राह पर चलना आसान नहीं होता और इसमें किसी मार्गदर्शक साथी की आवश्यकता होती है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि समाज में बदलाव केवल बातों से नहीं, बल्कि जीवनशैली में परिवर्तन लाकर ही संभव है। जब स्वयंसेवकों की जीवनशैली में बदलाव दिखेगा, तभी लोग उससे प्रेरित होकर उसे अपनाएंगे। विचार अच्छे हो सकते हैं, लेकिन लोग उन्हें तभी अपनाते हैं जब वे सामने उदाहरण देखते हैं।
महिलाओं की भूमिका पर बात करते हुए भागवत ने कहा कि संघ के विभिन्न कार्य विभागों में अब महिलाएं भी शामिल हो रही हैं और उनकी भागीदारी लगातार बढ़ रही है। समाजसेवा के कार्यों में पुरुष और महिलाएं मिलकर काम कर रहे हैं और कई बार नेतृत्व की भूमिका महिलाएं निभा रही हैं। उन्होंने एक प्रसंग साझा करते हुए कहा कि जब उनसे पूछा गया कि संघ में कितनी महिलाएं हैं, तो उन्होंने जवाब दिया कि जितने स्वयंसेवक हैं, कम से कम उतनी महिलाएं तो हैं ही।
कार्यक्रम के दौरान ‘तन समर्पित, मन समर्पित’ नामक पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया। इस मौके पर भागवत ने कहा कि यह पुस्तक हर परिवार में होनी चाहिए। अगर परिवार के लोग अपने साप्ताहिक संवाद की शुरुआत इस किताब के कुछ अंश पढ़कर करें, तो सोचने का तरीका, काम करने की शैली और जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक न केवल सुंदर ढंग से डिजाइन की गई है, बल्कि तकनीकी रूप से भी बेहतरीन है।