
शहर की हवा उस शाम कुछ अजीब थी। नवंबर की ठंडक में धुआँ मिला था — कहीं दूर से आती बारूद की गंध। लाल किले की प्राचीन दीवारें मौन थीं, जैसे इतिहास किसी अनहोनी की प्रतीक्षा कर रहा हो।
लाल रंग की हुंडई i20 धीरे-धीरे भीड़ के बीच से गुज़री। उसके पीछे एक बेचैन सन्नाटा था — और आगे, अंधेरे में चमकती नीयन लाइटें। ड्राइवर की सीट पर था डॉ. उमर — कभी कॉलेज के मंच पर व्याख्यान देने वाला, अब एक ख़ामोश साजिश का हिस्सा।
उसकी आँखों में यादें थीं — माँ की दुआएँ, पिता की उम्मीदें, और बीच में कहीं खोया हुआ वह खुद। किसी अदृश्य आदेश की बेड़ियों में बंधा हुआ।
घड़ी ने 6:27 बजाए — और शहर की रगों में बिजली दौड़ गई। एक विस्फोट ने आसमान को चीर दिया। हवा ने चिल्लाकर इतिहास को जगा दिया।
कई घरों में उस रात की गूंज देर तक सुनाई देती रही। लोगों ने कहा — “कौन था वो?” किसी ने नाम लिया — उमर। किसी ने कहा — “वो तो डॉक्टर था।”
दिन बीते। जांच चली। फिर एक दिन सफेद लिफाफे में आई डीएनए रिपोर्ट — ठंडी, वैज्ञानिक, मगर निर्णायक। उसमें लिखा था —
“नमूने पूरी तरह मेल खाते हैं।”
लाल किले की दीवारों ने यह सुनकर जैसे एक लंबी साँस छोड़ी। सदीयों से जो शहर सभ्यताओं का गवाह रहा, उसने उस दिन एक और सच देखा —
कि ज्ञान जब दिशा खो देता है, तो वही विनाश बन जाता है।




