
पुणे में सरकारी जमीन से जुड़े एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जिसने प्रशासनिक सिस्टम की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पशुपालन विभाग की कुल 15 एकड़ जमीन को अवैध रूप से बेच दिए जाने का मामला प्रकाश में आया है। इस जमीन का मूल्य 33 करोड़ रुपये बताया जा रहा है और इसे बिना किसी वैध अनुमति के निजी व्यक्तियों को बेचे जाने के आरोप सामने आए हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए इंस्पेक्टर जनरल रजिस्ट्रेशन (IGR) सहित कई अधिकारियों को तुरंत प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। साथ ही, राज्य सरकार ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश जारी किए हैं।
यह जमीन पिंपरी चिंचवाड़ के तथावड़े क्षेत्र में स्थित है, जो पशुपालन विभाग की संपत्ति मानी जाती है। नियमों के अनुसार किसी भी सरकारी जमीन को बेचने के लिए राज्य सरकार की स्पष्ट अनुमति अनिवार्य होती है, लेकिन इस मामले में बिना अनुमति बिक्री की गई। यही वजह है कि पुलिस और प्रशासन दोनों सक्रिय हुए और अब कई अधिकारी जांच के दायरे में आ चुके हैं।
अधिकारियों के अनुसार, IGR विद्या शंकर बड़े (सांगले) सहित वरिष्ठ बाबू, सब-रजिस्ट्रार इनचार्ज और कुछ अन्य कर्मचारियों को निलंबित कर जांच शुरू कर दी गई है। डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ रजिस्ट्रेशन एवं स्टैंप्स और जिला रजिस्ट्रार को पूरे प्रकरण की विस्तृत जांच सौंप दी गई है। पुलिस ने जमीन बेचने वालों तथा खरीदने वालों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है।
फिलहाल जांच इस बात पर केंद्रित है कि आखिर इतने बड़े स्तर पर हुई इस धांधली में किस-किस की भूमिका थी, किसने दस्तावेजों को गलत तरीके से प्रमाणित किया, और बिक्री की प्रक्रिया में किस स्तर तक मिलीभगत की गई। यह भी देखा जा रहा है कि जमीन को बेचने में किस तरह के फर्जी दस्तावेज या नोटरी का उपयोग किया गया।
मामला सामने आने के बाद स्थानीय राजनीतिक हलकों में भी हलचल बढ़ गई है। विपक्षी दलों ने इसे सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार का उदाहरण बताते हुए कड़ी आलोचना की है। वहीं, शासन का कहना है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
घोटाले का खुलासा होने के बाद प्रभावित विभागों में दस्तावेजों की जांच और सत्यापन की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। प्रशासन यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि ऐसी घटनाएँ भविष्य में दोबारा न हों।




