‘आओ बांटें खुशियां’ अभियान ने सरकारी स्कूलों को मुस्कान, स्वाद और स्नेह का न्योता बना दिया है।

⭐ शिक्षा में बदलाव की नई कहानी
छत्तीसगढ़ में शिक्षा केवल किताबों और पाठशाला तक सीमित नहीं रह गई, बल्कि अब यह सामाजिक जुड़ाव, संवेदनाओं और खुशियों को बांटने का माध्यम बन रही है। ‘आओ बांटें खुशियां’ अभियान और इसके अंतर्गत चल रही ‘न्योता भोजन योजना’ ने सरकारी स्कूलों के माहौल को पूरी तरह बदल दिया है। स्कूल अब केवल पढ़ाई की जगह नहीं, बल्कि उत्सव, संवाद और समाज से जुड़ाव का केंद्र बन गए हैं।
🎉 जब स्कूलों में लौट आई रौनक
इस योजना के तहत अब तक प्रदेश के 50,000 से अधिक स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में 95,000 से ज्यादा सामूहिक भोज आयोजित किए जा चुके हैं। अकेले रायपुर जिले में 480 से अधिक स्कूल इससे जुड़कर बच्चों के जीवन में खुशियां और आत्मविश्वास भर रहे हैं। बच्चे अब केवल पढ़ने नहीं, बल्कि समाज से जुड़ने, कुछ नया अनुभव करने और अपने सपनों को नए रंग देने स्कूल आते हैं।
👨👩👧 जन्मदिन अब समाज सेवा का पर्व
इस अभियान की सबसे प्रभावशाली बात यह है कि लोगों ने अपने जन्मदिन और विशेष अवसरों को अब केवल निजी खुशी तक सीमित नहीं रखा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, उनकी पत्नी कौशल्या देवी, मंत्रियों, विधायकों, अधिकारियों, समाजसेवियों और आम नागरिकों तक ने अपने जन्मदिन या विशेष दिनों पर बच्चों के साथ बैठकर भोजन परोसा। किसी ने खीर बांटी, किसी ने मिठाई, तो किसी ने दूध-अंडा, फल और पौष्टिक भोजन। इसने बच्चों को सम्मान, प्यार और belongingness (अपनापन) का एहसास दिलाया।
👦 बच्चों का बढ़ा आत्मविश्वास
शिक्षकों का मानना है कि पहले बच्चे मध्याह्न भोजन को केवल एक आवश्यकता के रूप में देखते थे, लेकिन अब वह इसे एक उत्सव की तरह लेते हैं। स्कूलों में जब विशेष भोज होता है, बच्चे खुद मेहमानों का स्वागत करते हैं, गीत गाते हैं, सजावट करते हैं और गर्व से कहते हैं— “आज हमारे स्कूल में न्योता भोज है!”
उनका आत्मविश्वास इतना बढ़ा है कि वे अब खुलकर बोलते हैं, सहभागिता करते हैं और नियमित स्कूल आने लगे हैं।
📈 स्कूल उपस्थिति में हुआ सकारात्मक सुधार
शैक्षणिक सत्र 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार, जिन स्कूलों में न्योता भोज हुआ, वहां बच्चों की उपस्थिति में 10–20% तक वृद्धि हुई। मध्याह्न भोजन में भागीदारी भी बढ़ी, और बच्चों में पोषण स्तर में सुधार के संकेत मिले। सरकार का लक्ष्य है कि इस समाज आधारित मॉडल से मध्याह्न भोजन योजना में कम से कम 10% सुधार लाया जाए।
🍽️ स्कूलों में हर महीने दो बार सामूहिक भोज
रायपुर समेत सभी ब्लॉकों में अब हर स्कूल में महीने में कम से कम दो बार ‘पूर्ण भोज’ और ‘अर्ध भोज’ का आयोजन किया जा रहा है। बच्चे इन दिनों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। भोजन में उन्हें दही, दूध, अंडा, फल, खीर और प्रोटीनयुक्त पदार्थ मिलते हैं। कई स्कूलों में बच्चे खुद यह तय करते हैं कि अगली बार क्या खाना चाहिए।
❤️ आंगनबाड़ी का मीठा अनुभव
भानसोज आंगनबाड़ी केंद्र में महिला बाल विकास विभाग की पर्यवेक्षक ऋतु परिहार ने बच्चों के साथ केक काटा, फल और पौष्टिक आहार बांटा। बच्चों की खुशी चेहरे पर साफ झलक रही थी। कई ऐसे कार्यक्रमों ने छोटे बच्चों में भी शिक्षा के प्रति लगाव और खुशी का संचार किया।
🙌 समाज सेवा का नया रूप
समाजसेविका नेहा सोनी और शिक्षक सोमप्रकाश तारक ने भी अपने जन्मदिन पर बच्चों के साथ केक काटकर खुशियां बांटीं। यह पहल केवल भोजन तक सीमित नहीं रही, बल्कि समाज को बच्चों से जोड़ने का माध्यम बन गई। इससे बच्चों ने महसूस किया कि समाज उनके साथ है।
🌟 शिक्षा का नया स्वरूप
‘आओ बांटें खुशियां’ अभियान ने शिक्षा को सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता, भावनात्मक जुड़ाव और आत्मसम्मान से जोड़ दिया है। यह पहल बताती है कि जब समाज शिक्षा से जुड़ता है, तो स्कूल सिर्फ भवन नहीं, बल्कि संस्कार और संवेदना का केंद्र बन जाते हैं।




