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Photo Credit: Social Media

लेखक: जितेंद्र शर्मा (रणनीतिकार)

कुम्भ स्नान का आयोजन चल रहा था और घाट पर भारी भीड़ जमा थी। उस दौरान शिव और पार्वती आकाश से गुजरे। पार्वती ने यह देखा और पूछा, “इतनी बड़ी भीड़ क्यों जमा है?” शिव ने उत्तर दिया, “कुम्भ पर्व पर स्नान करने वाले स्वर्ग जाते हैं। यही कारण है कि लोग यहाँ स्नान करने के लिए आए हैं।”

स्वर्ग की प्राप्ति और मन की शुद्धता

पार्वती का कौतूहल तो शांत हो गया, लेकिन एक नया सवाल उनके मन में उठा। उन्होंने पूछा, “इतने लोग स्वर्ग पहुँचते कहाँ हैं?” शिव ने उत्तर दिया, “शरीर को गीला करना एक बात है, लेकिन मन की मलिनता धोने वाला स्नान महत्वपूर्ण है। केवल वही लोग स्वर्ग जाते हैं जिन्होंने अपने मन को शुद्ध किया है।

कर्म से होती है पहचान

पार्वती का सन्देह अभी भी दूर नहीं हुआ था। उन्होंने पूछा, “यह कैसे पता चलेगा कि किसने शरीर धोया और किसने मन को धोया?” शिव ने उत्तर दिया, “यह उनके कर्मों से जाना जाता है।” लेकिन पार्वती की शंका बनी रही, तो शिव ने एक उदाहरण देकर यह समझाने की कोशिश की।

शिव का प्रत्यक्ष उदाहरण

मार्ग में शिव जी ने एक कुरूप कोढ़ी का रूप धारण किया और पार्वती को बहुत सुंदर सजा दिया। स्नानार्थियों की भीड़ ने जब उन्हें देखा, तो वे चकित हो गए और पार्वती से पूछा कि यह कौन हैं। पार्वती ने कहा, “यह मेरे पति हैं। वे गंगा स्नान करने आए हैं, लेकिन गरीबी के कारण मुझे इन्हें कंधे पर लाकर लाना पड़ा है। अब हम थोड़ी देर यहाँ विश्राम कर रहे हैं।”

लेकिन अधिकांश दर्शक पार्वती को प्रलोभन देने लगे और कोढ़ी को छोड़ने की बात करने लगे। पार्वती ने आश्चर्यचकित होकर यह सोचा, “क्या सचमुच लोग स्नान करने आते हैं?”

एक उदार व्यक्ति का समर्पण

इसी बीच, एक उदारचेता वहां आया। उसने पार्वती की कहानी सुनी, और उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने कोढ़ी को कंधे पर उठाया और तट तक पहुंचाया। साथ ही, उन दोनों को सत्तू खिलाया और पार्वती को नमन करते हुए कहा, “आप जैसी देवियाँ ही इस धरती की स्तंभ हैं। आपका धर्म पालन बहुत ही सराहनीय है।”

समाप्ति और संदेश

प्रयोजन पूरा होने के बाद शिव-पार्वती कैलाश की ओर लौट रहे थे। रास्ते में शिव ने कहा, “पार्वती! इतने लोगों में एक ही ऐसा था जिसने मन की शुद्धि की और स्वर्ग का मार्ग पाया। स्नान का महात्म्य तो सही है, लेकिन इसके साथ मन की शुद्धि की भी आवश्यकता है। पार्वती ने समझा कि स्नान का महात्म्य तो है, लेकिन मन की शुद्धता के बिना लोग उसके पुण्य से वंचित रह जाते हैं।

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