आरोग्यता का महापर्व – आश्विन पूर्णिमा – शरद पूर्णिमा मुहूर्त एवं महात्म्य

आश्विन पूर्णिमा 2024 आरोग्यता का महापर्व….

शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा व रास पूर्णिमा भी कहते हैं, हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। ज्‍योतिष के अनुसार, पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चन्द्रमाँ सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।


इस साल शरद पूर्णिमा का पावन पर्व 16 अक्टूबर को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है।

हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस साल शरद पूर्णिमा का पावन पर्व 16 अक्टूबर को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। इसे आरोग्य का पर्व भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होकर रातभर अपनी किरणों से अमृत वर्षा करता है। शारदीय नवरात्रि के बाद शरद पूर्णिमा का पावन पर्व पड़ता है। इस वजह से भी शरद पूर्णिमा का खास महत्व होता है। देश के कई राज्यों में इसे फसल उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन खीर बनाने की भी प्रथा है, खीर को रातभर चंद्रमा की चांदनी में रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन रातभर खीर को चंद्रमा की चांदनी में रखने से खीर अमृत के समान हो जाती है और इस खीर का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है।

तथ्य… खीर बनाने की परंपरा में विभिन्न वनस्पतियों के समावेश एवं दुग्ध और चावल जो डायरेक्ट चंद्रमा को कनेक्ट करता है, चुकी वनस्पति मिश्रित होने के वज़ह से अमृततुल्य हो जाता है जिसके सेवन से मनुष्य लंबे समय तक आरोग्य होता है।

शरद पूर्णिमा पौराणिक माहात्म्य एवं मान्यताएं……

ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी पूजन किया जाता है।

शरद पूर्णिमा को कोजागौरी लोक्खी (देवी लक्ष्मी) की पूजा की जाती है। चाहे पूर्णिमा किसी भी वक्त प्रारंभ हो पर पूजा दोपहर 12 बजे बाद ही शुभ मुहूर्त में होती है।

पूजा में लक्ष्मीजी की प्रतिमा के अलावा कलश, धूप, दुर्वा, कमल का पुष्प, हर्तकी, कौड़ी, आरी (छोटा सूपड़ा), धान, सिंदूर व नारियल के लड्डू प्रमुख होते हैं। जहां तक बात पूजन विधि की है तो इसमें रंगोली और उल्लू ध्वनि का विशेष स्थान है।

जब द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तब मां लक्ष्मी राधा रूप में अवतरित हुईं। भगवान श्री कृष्ण और राधा की अद्भुत रासलीला का आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन माना जाता है।

शैव भक्तों के लिए शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी कारण से इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है।

पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातः काल स्नान करके सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। माना जाता है कि इससे उन्हें योग्य पति की प्राप्त होती है।

अनादिकाल से चली आ रही प्रथा का आज फिर निर्वाह किया जाएगा। स्वास्थ्य और अमृत्व की चाह में एक बार फिर खीर आदि को शरद-चंद्र की चांदनी में रखा जाएगा और प्रसाद स्वरूप इसका सेवन किया जाएगा।

शरद पूर्णिमा विशिष्ट खीर (Sharad Purnima Special Kheer)

शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी को गाय के दूध में बनी चावल की खीर का भोग लगाया जाता है। माता को पीले या सफेद रंग की मिठाइयों का प्रसाद लगाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन रातभर खीर को चंद्रमा की चांदनी में रखने से खीर अमृत के समान हो जाती है। इस खीर को बनाने के लिए आपको चावल, गाय का दूध, चीनी, इलायची पाउडर की आवश्यकता होती है।

शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी को गाय के दूध में बनी चावल की खीर का भोग लगाया जाता है। माता को पीले या सफेद रंग की मिठाइयों का प्रसाद लगाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन रातभर खीर को चंद्रमा की चांदनी में रखने से खीर अमृत के समान हो जाती है। इस खीर को बनाने के लिए आपको चावल, गाय का दूध, चीनी, इलायची पाउडर की आवश्यकता होती है।

शरद पूर्णिमा 2024 दिनांक और शुभ मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 16 अक्टूबर को रात्रि 08 बजकर 40 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 17 अक्टूबर को शाम को 04 बजकर 55 मिनट पर होगा।

शरद पूर्णिमा पूजन विधि – (Sharad Purnima Pujan Vidhi)

शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्नान आदि कर लें। घर के मंदिर को साफ करके माता लक्ष्मी और श्री हरि के पूजन की तैयारी कर लें। इसके लिए एक चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं। इस पर माता लक्ष्मी और विष्णु जी की मूर्ति स्थापित करें। शरद पूर्णिमा में माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। उनके आठ रूप हैं, जिनमें धनलक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, राज लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी एवं विजय लक्ष्मी है।
उपाय :- ज्योतिषाचार्य के अनुसार आरोग्यता के महापर्व पर श्री सूक्त या कनक धारा स्त्रोत का पाठ अवश्य करें एवं 16 ऋचाओं से एक एक ऋचा का शुद्ध घी की आहुति अवश्य दें जिससे माँ महालक्ष्मी – सिद्धि लक्ष्मी – अष्ट लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त हों।

ज्योतिषाचार्य एवं समाचार सम्पादक रुद्र अभि सिंह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *