नाग पंचमी 2024, चंद्रमा का नक्षत्र – हस्त और सिद्ध योग का संयोग रहेगा।
नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है, और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। लेकिन कहीं-कहीं दूध पिलाने की परम्परा चल पड़ी है। नाग को दूध पिलाने से पाचन नहीं हो पाने या प्रत्यूर्जता से उनकी मृत्यु हो जाती है। शास्त्रों में नागों को दूध पिलाने को नहीं बल्कि दूध से स्नान कराने को कहा गया है। इस दिन नवनाग की पूजा की जाती है। आज के पावन पर्व पर वाराणसी (काशी) में नाग कुआँ नामक स्थान पर बहुत बड़ा मेला लगता है। किंवदन्ति है कि इस स्थान पर तक्षक गरूड़ जी के भय से बालक रूप में काशी संस्कृत की शिक्षा लेने हेतु आये, परन्तु गुरू पत्नी के सखियों से तक्षक रुपी बालक के बारे में बतलाने के कारण गरूड़ जी को इसकी जानकारी हो गयी, और उन्होंने तक्षक पर हमला कर दिया, परन्तु अपने गुरू जी के प्रभाव से गरूड़ जी ने तक्षक नाग को अभय दान कर दिया, उसी समय से यहाँ नाग पंचमी के दिन से यहाँ नाग पूजा की जाती है, यह मान्यता है, कि जो भी नाग पंचमी के दिन यहाँ पूजा अर्चना कर नाग कुआँ का दर्शन करता है,उसकी जन्मकुन्डली के सर्प दोष का निवारण हो जाता है।
भारत वर्ष में सर्प पूजन
भारत देश कृषिप्रधान देश हैं सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता है। साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है। साँप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए। भगवान दत्तात्रय की ऐसी शुभ दृष्टि थी, इसलिए ही उन्हें प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीख मिली। इसलिए भगवान दत्तात्रेय जी के दृष्टि में सभी जीव – जन्तु का सृष्टि में होना क्यों अनिवार्यता है – अतः उन्होंने सभी से कुछ ना कुछ सीख ली।
देव – दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन में डोर (रस्सी) रूपी साधन बनकर वासुकी नाग ने दुर्जनों के लिए भी प्रभु कार्य में निमित्त बने। दुर्जन मानव भी यदि सच्चे मार्ग पर आए तो वह सांस्कृतिक कार्य में अपना बहुत बड़ा योग दे सकता है, और दुर्बलता सतत खटकती रहने पर ऐसे मानव को अपने किए हुए सत्कार्य के लिए ज्यादा घमंड भी निर्माण नहीं होगा।
दुर्जन भी यदि भगवत् कार्य में जुड़ जाए तो प्रभु भी उसको स्वीकार करते हैं, इस बात का समर्थन भगवान शिव ने सर्प को अपने गले में धारण किया है, और भगवान विष्णु ने अनंत नाग का सय्या ग्रहण किया है।
समग्र सृष्टि के हित के लिए बरसते बरसात के कारण निर्वासित हुआ सर्प जब हमारे घर में अतिथि बनकर आता है तब उसे आश्रय देकर कृतज्ञ बुद्धि से उसका पूजन करना हमारा कर्त्तव्य हो जाता है। इस तरह नाग पंचमी का उत्सव श्रावण महीने में ही रखकर हमारे ऋषियों ने बहुत ही औचित्य दिखाया है।
कुछ दैवी सर्पों के मस्तिष्क पर मणि होती है। मणि अमूल्य होती है। हमें भी जीवन में अमूल्य वस्तुओं के बातों को मस्तिष्क पर चढ़ाना चाहिए। समाज के मुकुटमणि जैसे महापुरुषों का स्थान हमारे मस्तिष्क पर होना चाहिए। हमें प्रेम से उनकी पालकी उठानी चाहिए और उनके विचारों के अनुसार हमारे जीवन का निर्माण करने का अहर्निश प्रयत्न करना चाहिए। सर्व विद्याओं में मणिरूप जो अध्यात्म विद्या है, उसके लिए हमारे जीवन में अनोखा आकर्षण होना चाहिए। आत्मविकास में सहायक न हो, उस ज्ञान को ज्ञान कैसे कहा जा सकता है।
नागमणि – मानव शरीर के कुंडलिनी शक्ति एवं मानव निहित अनंत ऊर्जा का परिचायक है, साढ़े तीन उँगली लपेटी कुंडलिनी शक्ति को नाडिय़ां मेरुदंड में नाग फास रूपी लपेटी हुई मानव के इडा और पिंगला नाड़ी का परिचायक है, किंवदंतियों के अनुसार नागमणि धारक नाग व इन्सान शक्तिशाली हो सकता है, ठीक उसी प्रकार कुंडली शक्ति भेदन से मानव महामानव बन जाता है।
मान्यताओं के अनुसार नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक शक्ति, मनोवांछित फल और अपार धन की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शिव के गण माने जाने वाले नाग देवता की घर-घर में पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन नागदेवता की पूजा करने से आपका धन बढ़ता है और सर्पदंश का भय दूर होता है।
नागपंचमी के दिन 9 अगस्त 2024 को मान्यताओं के अनुसार गंगा जल व कच्चा दूध तथा दूर्वा (महामृत्युंजय मंत्र – पंचाक्षरी) मन्त्रोच्चार के साथ अभिषेक करने से राहु जनित समस्त दोषों का नाश हो जाता है। (सम्भव हो शिव मन्दिर में राहु मन्त्रों का जाप भी अवश्य करनी चाहए)
रुद्र अभि सिंह