स्वामी अच्युतानन्द पाठक
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार प्रेतो के कई रूप होते हैं
जैसे की पिशाच,बेताल , ब्रह्म राक्षस , डंकिनी , शंकिनी, पिशाचिनी, इत्यादि सब प्रेतों के ही रूप हैं।
मनुष्य अनेकों कारणों से मरने के बाद प्रेत बनता है
यदि किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हुई हो तो व्यक्ति प्रेत योनि को प्राप्त करता है , इसके अलावा यदि व्यक्ति की मरते समय कोई इच्छा शेष रह गई हो तो भी व्यक्ति प्रेत योनि में भटकता है।मनुष्य सदैव मोह के कारण ही प्रेत बनता है और उस समय तक प्रेत बना रहता है ,जब तक की उसकी इच्छाएं पूरी नही हो जाती इसके अलावा बुरे कर्म भी प्रेत योनि के कारण हैं।
इनका स्थान कहा होता है..?
पिशाच वगैरा सूखे और गीले तालाबों में नदी आदि के किनारे पर वास करते हैं ,बेताल भीड़-भाड़ से रहित एकांत स्थानों पर पेड़ इत्यादि पर निवास करते हैं।ब्रह्म राक्षस बड़े-बड़े तथा घने वृक्षों पर, जैसे पीपल, बरगद, नीम, बबलू आदि पर रहते हैं ।इसके अलावा पुराने टूटे फूटे मंदिरो तथा पुराने खंडहरों में भी इनका वास होता है।डंकिनी बावड़ी, कुओं के पास रहती है तथा शाकिनी, पिशाचिनी आजाद होकर आकाश में विचरण करती हैं।
अगर कोई व्यक्ति पिशाच के रहने के स्थान पर मल मूत्र का त्याग कर दे तो फिर वह पिशाच उस व्यक्ति के पीछे पड़ जाता है और उसे आखिरी तक नहीं छोड़ता शरीर रहित होने के कारण पिशाच अपनी इच्छाएं पूर्ण नही कर पाते और अकेले रहने के कारण क्रोधी स्वभाव के हो जाते हैं। पिशाच मनुष्य को अपना दुश्मन समझते हैं और मनुष्य को खुश देखकर वे दुखी हो जाते हैं।
राजस्थान के महू और मालवा इलाको में भूत प्रेतों से जुड़े अनेक किस्से देखने को मिलते हैं।जिन भी लोगो की जन्म कुंडली में 8 वें या 12 वें भाव में कुछ हिंसक योग है और आयु गणना के अनुसार भी उनकी उम्र कम है और बहुत लम्बे समय तक वे किसी अधूरी इच्छा की आस में जीते आए हैं ,ऐसे लोग मरने के बाद प्रेत ही बनते हैं फिर भले ही वह व्यक्ति मनुष्य शरीर में रहते हुए भक्ति ही करता हो।भक्ति का फल उसे ये मिलता है की मरने के बाद प्रेत योनि में रहने के बाद उसे मुक्ति देने वाला कोई मिल जाता है वरना तो सालो तक का भटकना होता है।
कुछ लोग चौकी आना, बजरंग बली का शरीर में आना या माता काली का शरीर में आना जैसी बाते कहकर भोग लेते हैं लेकिन वे असल में प्रेत ही होते हैं।
देवी देवताओं का कोई आकार नहीं होता
देवी देवताओं का कोई आकार नहीं होता वे बहुत सूक्ष्म तत्व होते है,जैसे की आकाश और पृथ्वी के बीच का खाली स्थान इसलिए लोग भ्रम में और दुख दूर करने की जल्दी में नकारात्मक शक्तियों को भोग देने लग जाते हैं। इसी तरह कुछ लोग अमावस ,दिवाली पर चौराहों पर खाने पीने के भोग रखकर आते है,ऐसा करने से वे उन नकारात्मक ऊर्जाओं को अपने पास आने का न्यौता दे आते हैं।
आपको बचना चाहिए गुमराह होने से