सुप्रीम कोर्ट ने 87 में से 71 गवाहों के मुकरने के बाद आरोपियों को बरी किया, साक्ष्यों के अभाव में सुनाया गया फैसला।

न्यायमूर्ति चंद्रन ने पीठ की ओर से लिखे 49 पन्नों के फैसले में कहा कि इस अनसुलझे अपराध से जुड़े सबूतों के अभाव के परिप्रेक्ष्य में भारी मन से आरोपियों को बरी किया जाता है। पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए और निचली अदालत के फैसले को बहाल करते हैं।’’ पीठ ने गवाहों के अदालत में मुकर जाने और “अति उत्साही” जांच पर दुख जताते हुए कहा कि जांच में “आपराधिक कानून के बुनियादी सिद्धांतों की पूरी तरह अनदेखी” की गयी, ऐसी परिस्थितियों में “अभियोजन पक्ष का अकसर मजाक बन जाता है”।
कोर्ट ने कहा- यह विचित्र मामला
पीठ ने कहा, ‘‘गवाह अपने पूर्व के बयानों से मुकर जाते हैं, बरामदगी को पहचानने से इनकार करते हैं, जांच के दौरान बताई गई गंभीर परिस्थितियों से अनभिज्ञता जताते हैं और चश्मदीद गवाह अंधे हो जाते हैं। यह एक विचित्र मामला है, जिसमें कुल 87 गवाहों में से 71 मुकर गए, जिससे अभियोजन पक्ष को पुलिस और आधिकारिक गवाहों की गवाही पर निर्भर रहना पड़ा।’’ अदालत ने आगे कहा, ‘‘यहां तक कि इस मामले का एक महत्वपूर्ण चश्मदीद गवाह मृतक का बेटा भी अपने पिता के हत्यारों की पहचान करने में विफल रहा।’’
आरोपियों को रिहा करने का आदेश
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए पुलिस और आधिकारिक गवाहों की गवाही पर भरोसा किया। साक्ष्यों और गवाहों की गवाही का विश्लेषण करने के बाद, अदालत का “एकमात्र दृष्टिकोण” यह था कि अभियोजन पक्ष अभियुक्तों के खिलाफ आरोपों को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा। न्यायालय ने कहा कि यदि अभियुक्त हिरासत में है और किसी अन्य मामले में इसकी आवश्यकता नहीं है, तो उसे रिहा किया जाए।
क्या है मामला?
28 अप्रैल 2011 को कर्नाटक में दो भाइयों के बीच विवाद के चलते रामकृष्ण नाम के एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। हत्या के समय वह अपने बेटे के साथ टहलने निकलने थे। रामकृष्ण पहले एक भाई के लिए काम करते थे, लेकिन बाद में वह दूसरे भाई के लिए काम करने लगे। इसके बाद उनके छह पुराने साथियों ने रामकृष्ण की हत्या की साजिश रची थी, लेकिन सबूतों और गवाह के अभाव में सभी को बीर कर दिया गया।