सम्पादकीय

छत्तीसगढ़ के दर्जनभर से अधिक गांवों में लगे पादरियों की नो एंट्री के बोर्ड

छत्तीसगढ़ के कई गांवों में पादरियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। गांवों के बाहर ‘नो एंट्री’ के बोर्ड लगाए गए हैं, जिससे क्षेत्र में तनाव की स्थिति है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह निर्णय गांव की शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए लिया गया है। इस घटना से धार्मिक स्वतंत्रता और स्थानीय परंपराओं को लेकर बहस छिड़ गई है।

 छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में मतांतरण को लेकर बढ़ते विवाद के बीच दर्जनभर से अधिक गांवों में पादरियों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया गया है। ग्रमीणों ने यहां पादरियों की नो एंट्री के बोर्ड लगा दिए हैं। बस्तर संभाग के कांकेर जिले में मतांतरण को लेकर उपजा तनाव अब गांव-गांव तक फैल गया है।

भानुप्रतापपुर विकासखंड के कुड़ाल गांव से शुरू हुई यह मुहिम अब जिले के 14 से अधिक गांवों तक पहुंच चुकी है। ग्रामीणों ने गांवों की सीमा पर बोर्ड लगाकर पादरियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। संभाग की 67 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासी है, जिनमें से लगभग सात प्रतिशत का मतांतरण हो चुका है।

अनुसूचित जाति की लगभग तीन लाख आबादी वाली माहरा जाति में 95 प्रतिशत तक मतांतरण हो चुका है। यह विवाद आमाबेड़ा क्षेत्र के बड़ेतेवड़ा गांव में अंतिम संस्कार के दौरान हिंसा और तोड़फोड़ के बाद और तेज हुआ है।

बाहरी हस्तक्षेप से पुराने रीति-रिवाज व सामाजिक ढांचे को खतरा

ग्रामीणों और सरपंचों का कहना है कि यह फैसला किसी धर्म के विरोध में नहीं, बल्कि आदिवासियों को प्रलोभन देकर कराए जा रहे मतांतरण को रोकने के लिए लिया गया है। उनका तर्क है कि बाहरी हस्तक्षेप से उनके पुराने रीति-रिवाज और सामाजिक ढांचा खतरे में है। वर्तमान में कुड़ाल, मुसुरपुट्टा और कोड़ेकुर्रो जैसे 14 से अधिक गांवों में बोर्ड लग चुके हैं, जबकि दर्जनों अन्य गांवों मे ऐसे ही प्रस्ताव लाने की तैयारी है।

ग्राम सभाओं ने पेसा अधिनियम 1996 के तहत यह निर्णय लिया। उन्होंने बोर्ड लगाकर स्पष्ट किया कि गांवों में मसीही धार्मिक आयोजन वर्जित रहेंगे। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने भी इन ग्राम सभाओं के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने माना कि जबरन या प्रलोभन देकर मतांतरण रोकने के लिए लगाए गए ये बोर्ड असंवैधानिक नहीं हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति की रक्षा के लिए ग्राम सभा का एहतियाती कदम है।

मतांतरण को लेकर बढ़ा सामाजिक तनाव

जिले के कुड़ाल गांव में अगस्त 2025 में ग्राम सभा की बैठक बुलाई गई थी। इसमें प्रस्ताव पारित कर पादरियों के प्रवेश पर रोक का बोर्ड लगाया गया। इसके बाद यह अभियान तेजी से परवी, जनकपुर, भीरागांव, घोडागांव, जुनवानी, हवेचुर, घोटा, घोटिया, सुलंगी, टेकाठोडा, बांसला, जामगांव, चारभाठा और मुसुरपुट्टा आदि गांवों तक फैल गया।

सामाजिक कार्यकर्ता गौरव राव ने आरोप लगाया कि मतांतरण के माध्यम से स्थानीय सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने का प्रयास किया जा रहा है। चंगाई सभाओं के लिए ग्राम सभा की अनुमति नहीं ली जाती, छोटे घरों में प्रार्थना सभाएं हो रही हैं। मतांतरण के बाद नाम नहीं बदले जा रहे, जो नियम विरुद्ध है।

बोर्ड पर लिखा, मतांतरण करना हमारी संस्कृति के लिए खतरा

बोर्ड पर लिखा है कि गांव में आदिवासियों को प्रलोभन देकर मतांतरण करना हमारी संस्कृति पहचान को नुकसान पहुंचाने के साथ आदिम संस्कृति को खतरा है। अत: ग्राम सभा के प्रस्ताव के आधार पर पास्टर, पादरी एवं मतांतरित व्यक्तियों के धार्मिक आयोजन के उद्देश्य से प्रवेश पर रोक लगाते हैं।

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