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कर्नाटक में सीएम पद की दौड़ में डीके शिवकुमार ने बढ़ाया दबाव: पूजा यात्रा पर उठे सवाल

लेखक वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव

कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री और धनाढ्य राजनेता डीके शिवकुमार ने मुख्यमंत्री पद की दौड़ में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एक नई रणनीति अपनाई है। उनकी संपत्ति, जो चौदह हजार तेरह करोड़ रुपये से अधिक है। उन्हें भारत के सबसे धनी विधायक का दर्जा दिलाती है। इस बीच शिवकुमार ने तमिलनाडु के कुंभकोणम और कांचीपुरम मंदिरों का दौरा किया, जहां उन्होंने शक्तिमठ प्रत्यंगिरा देवी की पूजा की।

होम के जरिए अपनी सुरक्षा की प्रार्थना

वैकुंठ एकादशी (10 जनवरी) को शिवकुमार ने अपनी पत्नी उषा के साथ कुंभकोणम मंदिर में होम करवाया, जिसे उन्होंने अपनी सुरक्षा और मानसिक शांति के लिए बताया। इस पूजा का आयोजन उन्होंने अपने राजनीतिक दुश्मनों से बचने के लिए किया। हालांकि केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी गौड़ा ने इसे उनके दुश्मनों को नष्ट करने के प्रयास के रूप में देखा। शिवकुमार ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह नियमित रूप से पूजा करते हैं और इस होम का आयोजन केवल अपनी मानसिक शांति के लिए था।

कर्नाटक कांग्रेस में आंतरिक कलह की बढ़ती चर्चा

शिवकुमार की मंदिर यात्रा ने कर्नाटक कांग्रेस के आंतरिक संघर्षों को फिर से सामने ला दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या की पत्नी पर भूमि घोटाले के आरोप लगने के बाद कर्नाटक कांग्रेस के भीतर अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी सांसद बसवराज बोम्मई ने भी टिप्पणी की है कि कांग्रेस की सत्ता में आने के बाद से राज्य में आंतरिक कलह और अस्थिरता बनी हुई है। और यह सवाल उठ रहा है कि डीके शिवकुमार का धैर्य कब तक टिकेगा।

सिद्धरामय्या और शिवकुमार के बीच बढ़ती दूरी

मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के धार्मिक आस्थाओं के बीच मतभेद कर्नाटक कांग्रेस के भीतर और भी स्पष्ट होते जा रहे हैं। शिवकुमार का मंदिरों में लगातार पूजा-अर्चना करना और सिद्धरामय्या का धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण, दोनों के बीच एक गहरी खाई को दर्शाता है, जो कर्नाटक की राजनीति में नई हलचल का कारण बन सकता है।

राजनीतिक रूप से शक्तिशाली, लेकिन मंदिर यात्रा पर सस्पेंस

शिवकुमार की मंदिर यात्रा और पूजा अर्चना ने कर्नाटक की राजनीति में नए सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह सिर्फ एक धार्मिक यात्रा थी। या इसके पीछे मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी स्थिति मजबूत करने की एक रणनीति थी? फिलहाल, कर्नाटक के राजनीतिक हलकों में इस पर लगातार चर्चाएं हो रही हैं।

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