नोएडा में GIS तकनीक पर आधारित वर्टिकल सबस्टेशन बनेंगे: मुंबई दौरे के बाद तैयार हुआ प्लान, कम जगह में कम रखरखाव की सुविधा और अंडरग्राउंड केबलिंग से होगा कनेक्शन

शहर में वर्टिकल सब स्टेशन बनाने की योजना तैयार हो चुकी है। इन्हें स्थापित करने के लिए केवल 500 वर्गमीटर से भी कम जगह की जरूरत होगी, जबकि पारंपरिक सब स्टेशन के लिए 5,000 वर्गमीटर से ज्यादा जगह चाहिए होती है। ये आधुनिक सब स्टेशन गैस इंसुलेटेड सब स्टेशन (GIS) तकनीक पर आधारित होंगे।
नोएडा का सेक्टर-6 स्थित प्राधिकरण का प्रशासनिक खंड का कार्यालय
अंडरग्रांउड केबलिंग के साथ सप्लाई इस पूरे सिस्टम बिजली सप्लाई के लिए अंडरग्राउंड केबलिंग से कनेक्ट किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कनेक्शन तक अंडरग्राउंड होंगे। ताकि आंधी , तुफान या बारिश में फाल्ट की संभावना जीरो रहे। हाल ही में मुबंई में गैस इंसुलेटेड सब स्टेशन तकनीक का प्रयोग करके 400 केवी का सबस्टेशन बनाया गया है। ये वर्टिकल बना है। इसमें उपकरणों को लंबवत रूप से व्यवस्थित किया गया है। जिससे कम जगह में अधिक क्षमता मिलती है। 400 केवी क्षमता उच्च वोल्टेज विद्युत शक्ति को संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
इसी तरह यहां भी 220 केवी, 132 और 33 केवी एक ही इमारत में डिजाइन करके बनाए जा सकते है। उन्होंने बताया कि जीआईएस एक ऐसी तकनीक है। जिसमें विद्युत उपकरणों को एक बंद गैस से भरे कंटेनर में रखा जाता है। यह पारंपरिक एयर-इंसुलेटेड सबस्टेशनों की तुलना में कम जगह लेता है। धूल, नमी और अन्य पर्यावरणीय कारकों से बेहतर सुरक्षा प्रदान करता है। वर्टिकल सबस्टेशन में, विद्युत उपकरण, जैसे कि सर्किट ब्रेकर, ट्रांसफॉर्मर, और स्विच गियर, एक के ऊपर एक लंबवत रूप से व्यवस्थित होते हैं।
जीआईएस तकनीक इस तरह से करती है काम
गैस इंसुलेटेड सब स्टेशन के फायदा
- वर्टिकल सबस्टेशन पारंपरिक सबस्टेशनों की तुलना में कम जगह में स्थापित किए जा सकते हैं। ये नोएडा जैसे शहर के लिए बेहतर विकल्प है।
- जीआईएस तकनीक धूल, नमी और अन्य पर्यावरणीय कारकों से बेहतर सुरक्षा प्रदान करती है। जिससे सबस्टेशन की विश्वसनीयता बढ़ जाती है।
- जीआईएस सबस्टेशन अधिक सुरक्षित होते हैं क्योंकि विद्युत उपकरण बंद कंटेनरों में होते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा कम हो जाता है।
- जीआईएस सबस्टेशन को कम रखरखाव की आवश्यकता होती है क्योंकि उपकरण धूल और नमी से सुरक्षित रहते हैं।