राष्ट्रीय

भारत मंडपम में ग्रामीण शिल्पकारों की अद्भुत कला का प्रदर्शन, मेहनत और लग्न से सुनहरी दास्तान लिख रहे कलाकार

भारत मंडपम में ग्रामीण शिल्पकारों की अद्भुत कला का प्रदर्शन हो रहा है। बिहार की नाजदा खातून, उत्तर प्रदेश की दिलकश और झारखंड के धीरज जैन जैसे कलाकार अपनी मेहनत से आत्मनिर्भरता की कहानी लिख रहे हैं। वे अपनी कला के माध्यम से परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं। नाजदा खातून सिक्की आर्ट की शिक्षा देकर महिलाओं को सशक्त बना रही हैं।

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HighLights

  1. शिल्पकारों ने दिखाई आत्मनिर्भरता की राह
  2. नाजदा खातून ने सिखाया सिक्की आर्ट
  3. कला से पर्यावरण बचाने का संदेश

 

पंखों में हुनर की ताकत वही है, पर सपनों की उड़ान नई है…। भारत मंडपम ऐसे ही जिजीविषाओं से भरा हुआ है। जहां सुदूर ग्रामीण अंचलों से निकले शिल्पकार अपने उत्कृष्ट और चकित कर देने वाले शिल्प से भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में खास प्रभाव छोड़ रहे हैं।

साथ ही आत्मनिर्भर व स्वदेशी भारत की नई पटकथा लिख रहे हैं। जैसे, बिहार के मधुबनी की स्टेट अवार्डी नाजदा खातून, उत्तर प्रदेश की दिलकश और झारखंड के धीरज जैन को ही लें, जो अपनी मेहनत व लग्न से स्वावलंबन की सुनहरी दास्तान लिख रहे है। धातु , सिक्की घास और बारीक मोतियों से बने उनके सुंदर आभूषणों में सुदूर गांव की परंपरा और आत्मीयता है।

व्यापार मेले में उत्तर प्रदेश के हापुड जिले की स्टाल संचालिका दिलकश बताती है कि इसकी शुरुआत करीब 20 साल पहले उनके गांव में एक एनजीओ से जुड़े कुछ लोग आए। उन्होंने गांव की महिलाओं को सशक्त और आत्म निर्भर बनने की सीख दी। उस समय बड़ी बहन ने काम सीखा और गांव की दूसरी महिलाओं को प्रशिक्षित करना शुरू किया। मगर, शादी के बाद वो अपने काम को जारी नहीं रख पाईं, फिर दिलकश ने खुद इस इस काम का बीड़ा उठाया। उन्होंने हार नही मानी मेहनत करती रही।

अब करीब 40 परिवार की महिलाओं को बारीक मोतियों से बनने वाले कारोबार से भी जोड़ा है। दिलकश बताती है कि अब वह महिलाओं से मोतियों के आभूषण तैयार करवाती हैं। इसी काम के चलते तीन साल पहले उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने का मौका भी मिला था। दिलकश ने स्नातक और कानून की पढ़ाई की है। साथ ही उन्होंने समाज शास्त्र और संगीत में स्नातकोत्तर किया है। दिलकश अच्छी नौकरी कर सेटल हो सकती थीं।

लेकिन, उन्हें ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की ठानी और इसके लिए उन्होंने महिलाओं को हुनर सिखाया।आज वह करीब 40 महिलाओं को रोजगार दे रही है।

झारखंड के सिंहभूम से आए कलाकार धीरज जैन फ्यूजन आर्ट का प्रयोग कर न केवल मेटल के आभूषण बना रहे है बल्कि उनमें जान डाल रहे है। इसके साथ ही वह अपनी कलाकृति के माध्यम से जंगल, जमीन, जंगल और पर्यावरण को बचाने का संदेश भी दे रहे है।

वह राजस्थान, बिहार और आदिवासी कला को मिलाकर नए आभूषण तैयार कर रहे हैं। जिनमें परंपरा के साथ आधुनिकता का भी समावेश है। जो लोगों द्वारा बहुत पसंद की जा रही है। यह काम उनकी माता करती थी।अब इस परंपरा को वह आगे बढ़ाने के साथ ही अपने गांव 30 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। हालांकि, उन्होंने बीकाम आनर्स विषय में स्नातक की पढ़ाई की हुई है।

बिहार के मधुबनी जिले की नाजदा खातून ने बताया कि उन्होंने 12 साल की उम्र में यह कला अपनी दादी से सीखी थी। उन्होंने सिलाई भी सीखी, लेकिन उनकी रुचि हस्तशिल्प में ही रही। शुरुआती दिनों में उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद अच्छी तरह नहीं बिके, जिससे उन्हें वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

पारिवारिक बाध्यताओं के कारण छोटी उम्र में ही उनकी शादी कर दी गई, लेकिन उन्होंने मेहनत करना नहीं छोड़ा। उन्होंने घास और ताड़ के पत्तों से बनी से इयर रिंग, चूड़ियां, टाप्स, टोकरियां, पर्स, गुड़िया, चूड़ियां, राधा कृष्ण की मूर्तियां बनाई। वर्ष 2015 में उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें राज्य पुरस्कार सम्मान मिला। आज नाजदा खातून 500 अधिक छात्राओं को सिक्की आर्ट की शिक्षा दे रही है।

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