छत्तीसगढ़ से आए आस्था के वाहक: महाकुंभ में रामनामी संप्रदाय के अनुयायी: राम नाम से सजी देह, संगम में स्नान का है विशेष महत्व

लखनऊ। सनातन संस्कृति के महापर्व महाकुम्भ में विविध संप्रदायों के साधु-संन्यासी एकत्र होते हैं, और इस बार छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के अनुयायी भी पवित्र संगम में आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे हैं। रामनाम के साथ शरीर को सजाए हुए ये लोग महाकुम्भ के दौरान राम भजन करते हुए संगम में पवित्र स्नान करने के लिए तैयार हैं।
रामनामी संप्रदाय का इतिहास और परंपरा
रामनामी संप्रदाय की शुरुआत 19वीं शताब्दी में छत्तीसगढ़ के जांजगीर में हुई थी, जब जनजातियों को मंदिर और मूर्ति पूजा से वंचित कर दिया गया था। तब उन्होंने अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाकर इसे मंदिर के रूप में स्वीकार किया। इस पंथ के अनुयायी अपने शरीर पर राम नाम का गोदना गुदवाते हैं और सफेद वस्त्र तथा मोरपंख के मुकुट के साथ राम नाम का जाप करते हैं।
महाकुम्भ में रामनामी संप्रदाय का विशेष योगदान
रामनामी संप्रदाय के अनुयायी महाकुम्भ के दौरान संगम में पवित्र स्नान करते हुए अपनी धार्मिक परंपरा को निभा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के सारंगढ़, भिलाई, बालोदाबजार, और जांजगीर से लगभग 200 रामनामी महाकुम्भ में सम्मिलित होने आए हैं, और वे आने वाले समय में भी इसे जारी रखने का संकल्प लेते हैं।
राम नाम को मानते हैं भवसागर की पतवार
रामनामी संप्रदाय के अनुयायी मानते हैं कि राम नाम ही अवतार है और वही भवसागर से पार लगाने वाली पतवार। उनका विश्वास है कि मंदिर और मूर्ति पूजा की जगह, राम नाम का जाप और रामनाम लिखी देह ही उनका मंदिर है।
परंपरा की महिमा और अगली पीढ़ी की जिम्मेदारी
रामनामी संप्रदाय के अनुयायी अपनी आस्था और परंपरा को लेकर दृढ़ हैं, और वे इसे अपनी अगली पीढ़ी को भी सौंपने का संकल्प लेते हैं। महाकुम्भ में रामनामी संप्रदाय का हिस्सा बनकर वे हर साल अपनी धार्मिक परंपराओं को आगे बढ़ा रहे हैं।