श्रावण अथवा सावन हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पाँचवा महीना पड़ता है। इसे वर्षा ऋतु का महीना या (पावस ऋतु) भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय बहुत वर्षा होती है। इस माह में अनेक महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें हरियाली तीज, रक्षाबंधन, नागपंचमी आदि प्रमुख हैं। श्रावण पूर्णिमा को दक्षिण भारत में नारियली पूर्णिमा या अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम, उत्तर भारत में रक्षाबंधन पर गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है। त्योहारों की विविधता ही तो भारत की विशिष्टता को पहचान है। श्रावण यानी सावन माह में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार सावन के सोमवार कहे जाते हैं, जिनमे स्त्रियाँ तथा विशेषतौर से कुँवारी युवतियाँ भगवान शिव से निमित्त व्रत आदि रखती हैं।
सावन के पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन माह प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब आदिशक्ति पूर्व जन्म सती स्वरूप में इसी समय हर जन्म में पति रूप में पाने का प्रण किया था। फिर पार्वती स्वरूप में युवावस्था में सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और भगवान शिव से उनका विवाह हुआ।
श्रावण मास के अन्य कथा है, जिसमें मरकंडू ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय ने लंबी उम्र के लिए सावन माह में कठोर तप कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त की।
शास्त्रों में वर्णित सावन माह आरंभ होने के पूर्व ही श्री नारायण चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं।
शिव की पूजा
सावन मास में शिव शंकर की पूजा उनके परिवार के सदस्यों संग करनी चाहये। इस माह में भगवान शिव के रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। इसलिए इस मास में प्रत्येक दिन रुद्राभिषेक किया जा सकता है, जबकि अन्य माह में शिवास का मुहूर्त देखना पड़ता है। भगवान शिव के रुद्राभिषेक में जल, दुग्ध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर, गंगाजल तथा गन्ने का रस आदि से स्नान कराया जाता जाता है। अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, शमीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं। अंत में भाग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को प्रसन्न करने के शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है।
शिवलिंग पर बिल्व पत्र तथा शमीपत्र चढ़ाने का वर्णन पुराणों में भी किया गया है। बिल्वपत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने के शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है।
मदार का पुष्प शिवलिंग पर अर्पण करने से सोने के दान बराबर फल मिलता है। हजार आक के फूलों की अपेक्षा एक कनेर का फूल, हजार कनेर के फूलों को चढ़ाने की अपेक्षा एक बिल्व पत्र से दान का पुण्य मिल जाता है। हजार बिल्वपत्र के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी होते हैं। हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हज़ार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हज़ार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हज़ार शमी के पत्तों के बराबर एक नीलकमल, हज़ार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हजार धतुरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला है।