आसान तरीकों से फिर घर में फुदक सकती है नन्ही गौरैया : प्रकृति के नन्हे दूत है गौरैया

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गौरैया
  • गौरैया दिवस पर जो जागरूकता फैलाई जा रही है, वह अति प्रशंसनीय है : पुष्पलता मिश्रा।
बस्ती। आज “विश्व गौरैया दिवस” पर नानक नगर पचपेड़िया रोड स्थित नाइस बस्ती के डायरेक्टर अंकित गुप्ता ने सभी छात्र-छात्राओं को संकल्प दिलाया ‘आसान उपायों से फिर घर में फुदक सकती है नन्ही गौरैया’ इन्हें संरक्षित करना सभी का दायित्व है। इस अवसर पर गौरैया पक्षी के लिए लकड़ी तथा कार्ड बोर्ड की सहायता से विभिन्न घोसलों के मॉडल तैयार कराकर संस्कार भारती गोरक्ष प्रांत की भूतपूर्व कार्यकारी अध्यक्ष कैप्टन डा. पुष्पलता मिश्रा को भेंट किया।
गौरैया
गौरैया की घटती आबादी के पीछे मानव विकास सबसे अधिक जिम्मेदार :
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्प्यूटर एजुकेशन के डायरेक्टर अंकित गुप्ता ने पक्षियों का महत्व और उनके संरक्षण पर जानकारी देते हुए कहा कि आज भी स्थान ऐसे कई स्थान हैं, जहां लोगों की आवाजाही अपेक्षाकृत कम होने से गौरैया सुरक्षित महसूस करती हैं। यही नहीं, यहां की कच्ची भूमि पर उगने वाली घास के बीज, यहां पनपने वाले कीड़े आदि इनका भोजन हैं। यदि हम अपने घर में भी ऐसा ही वातावरण इन्हें दें तो ये वहां भी आ सकती हैं।उन्होंने गौरैया की घटती आबादी के पीछे मानव विकास को सबसे अधिक जिम्मेदार बताया। गौरैया को बचाने के लिए अपने घरों के अहाते और पिछवाड़े डेकोरेटिव प्लान्ट्स , विदेशी नस्ल के पौधों के बजाए देशी फ़लदार पौधे लगाकर इनको आहार और घरौदें बनाने का मौका दे सकते हैं। साथ ही जहरीले कीटनाशक के इस्तेमाल को रोककर, इन वनस्पतियों पर लगने वाले परजीवी कीड़ो को पनपने का मौका देकर इन चिड़ियों के चूजों के आहार की भी उपलब्धता करवा सकते है, क्यों कि गौरैया जैसे परिन्दों के चूजें कठोर अनाज को नही खा सकते, उन्हे मुलायम कीड़े ही आहार के रूप में आवश्यक होते हैं। इन पेड़ों पर वह आसानी से घोंसला भी बना सकती है, तथा खिड़की या बालकनी में एक मिट्टी के बर्तन मे थोड़ा-सा पानी और प्लेट मे दाना रख दें। जिससे आप सभी के आंगन में गौरैया की चहचहाहट सुनायी दें सके।

बाहर थोड़ा स्थान ऐसा रखें, जहां मिट्टी और देसी घास लगी हो

कैप्टन डा. पुष्पलता मिश्रा कहा कि विश्व गौरैया दिवस पर आचार्य अंकित गुप्ता द्वारा जो जागरूकता फैलायी जा रही है, वह अति प्रशंसनीय है। बच्चों के द्वारा बनाये गए गौरेया के घोंसले बहुत ही सुन्दर है। आज हम सभी छोटे-छोटे तरीकों को अपनाकर आवासीय क्षेत्रों में भी गौरैया को बुला सकते हैं। इसके लिए घर के बाहर थोड़ा स्थान ऐसा रखें, जहां मिट्टी और देसी घास लगी हो। कोई स्थान ऐसा सुनिश्चित करें जहां इनके लिए दाना डाला जा सकता हो और पानी के सकोरे रखे हों। किंतु ऐसी जगह पर जानवर या इंसान की आवाजाही नहीं होनी चाहिए। घर के आसपास या कालोनी के बगीचे में कुछ झाड़ियां हों ताकि वह उनमें बैठ सके।

उन्होने कहा कि वर्तमान में घर में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती, जहां गौरैया घोंसला बना सके, इसलिए घर में बर्ड हाउस लगाएं, जिसमें वह घोंसला बनाकर अपना जीवन चक्र आगे बढ़ा सके। बबूल, शहतूत, गुड़हल, करोंदा , फालसे, मेंहदी जैसे पौधे लगाकर भी इन्हें आकर्षित किया जा सकता है।

वह दिन दूर नहीं जब गिद्धों की तरह गौरैया भी इतिहास बन जाएगी

बताते चलें कि दुनिया भर में 20 मार्च गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में समय रहते इस विलुप्त होती प्रजाति पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब गिद्धों की तरह गौरैया भी इतिहास बन जाएगी और यह सिर्फ गूगल और किताबों में ही दिखेगी। इसके लिए हमें आने वाली पीढ़ी को बताना होगा की गौरैया या दूसरी विलुप्त होती पक्षियां मानवीय जीवन और पर्यावरण के लिए खास अहमियत रखती हैं।

पूर्व छात्रों ने भी प्रातः गौरैया पक्षी के लिए लकड़ी तथा कार्ड बोर्ड की सहायता से विभिन्न घोसलों के मॉडल तैयार कर भेंट किया और अपने घर के आसपास पौधें लगाने तथा उनका संवर्धन करने का संकल्प लिया कि पक्षियों को बचाना और वृक्षों को काटने से रोकना हमारा दायित्व हैं, तभी हमारे देश का वातावरण प्रदूषण मुक्त हो सकेगा।

इस अवसर पर अंकित गुप्ता, समीक्षा चौधरी, सौरभ चौधरी, आकांक्षा चौधरी, दीपांजली, अनन्या गुप्ता ने गौरैया पक्षी बचाने के लिए  अपने घर के आसपास पौधे लगाने का भी संकल्प लिया।

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