ताजमहल को अब तक तीन बार ढंका जा चुका है: पहली बार 1942 में और आखिरी बार 1971 में, अब सुरक्षा और भी कड़ी कर दी गई है

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इस तरह से ताजमहल पर बांस से कवर बनाया गया था

भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक की। इसके बाद 7 मई को आगरा में मॉक ड्रिल आयोजित की गई। पूरे शहर में पुलिस और प्रशासन सतर्क हैं, वहीं ताजमहल की सुरक्षा को लेकर विशेष सख्ती बरती जा रही है। फिलहाल ताजमहल पर सुरक्षा के कड़े प्रबंध लागू हैं।

आम जनता के सहयोग से होता था ब्लैक आउट रमाकांत बताते हैं कि ब्लैक आउट आम जनता के सहयोग से होता था। लोगों में जज्बा, जोश था। दुश्मन के प्रति नाराजगी थी। रोज ब्लैक आउट नहीं होता था। जिस समय अटैक का डर होता था, उस समय सायरन बजता था। ब्लैक आउट होते ही युवा घरों से बाहर निकल आते थे। जिस घर से रोशनी दिखती थी, वहां हम जाकर लोगों को समझाते थे कि रोशनी बाहर न आने पाए। शाम को ब्लैक आउट होते ही सिविल डिफेंस और युवा घरों से निकलते थे। लोगों को बिजली बंद करने की अपील करते थे। रमाकांत का कहना है कि हम तब भी जीते थे, और अब भी जीतेंगे ही।

लोग अपने घरों में रहते थे इस्लाम बताते हैं कि ताजमहल को काले कपड़े से ढका गया था। लोग अपने घरों में बंद रहते थे। अजीब माहौल था। ज्यादा तो याद नहीं है, लेकिन हम अपने घरों से नहीं निकलते थे। डर का माहौल था।

10 दिन में ढका गया था ताजमहल चार दिसंबर की शाम को ताजमहल को जंगल में तब्दील करने का काम शुरू किया गया था। जूट के बोरों को हरे रंग में रंग कर डाला गया था। सिकंदरा स्मारक से पेड़ों की ट​हनियां लाकर ताजमहल में डाली गई थीं। ताजमहल के फर्श पर मिट्टी और कूड़ा करकट डाला गया था। इस काम में 10 दिन लगे थे। इस काम में 250 मजदूर लगे थे। 20 हजार 500 रुपये का खर्चा आया था।

जापान से भी था डर ताजमहल को सबसे पहले 1942 में ढका गया था। उस समय जापानी वायुसेना के हवाई हमलों की आशंका थी। जिसके चलते ताजमहल को बांस के ढांचे और हरे कपड़े से ढका गया था। 1965 में ताजमहल को काले कपड़े से ढका गया था।

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