सिर्फ एक रूपये में ईश्वर की खोज: एक मासूम बच्चे की अद्भुत कहानी…..

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लेखक: जितेंद्र शर्मा (रणनीतिकार)
एक मासूम बच्चा जो सिर्फ आठ साल का था, एक दिन 1 रूपये का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर पहुँचा। उसकी आँखों में सवाल था, “क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे। यह सुनकर दुकानदार ने हैरान होकर सिक्का नीचे गिरा दिया और बच्चे को बाहर कर दिया। लेकिन बच्चा हार मानने वाला नहीं था। वह अपनी खोज में अगली दुकान पर गया, फिर एक और दुकान, और फिर एक और दुकान… कुल मिलाकर चालीस दुकानों के चक्कर लगाने के बाद, वह एक वृद्ध दुकानदार के पास पहुंचा।
वृद्ध दुकानदार से मुलाकात और सवाल
वृद्ध दुकानदार ने बच्चे से पूछा, “तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो? क्या करोगे ईश्वर लेकर?” यह सवाल सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें चमकीं। बच्चे ने बताया, “मेरी मां अब अस्पताल में हैं। डॉक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ ईश्वर ही उन्हें बचा सकते हैं। क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे?”
आशा की किरण: एक रूपये में ईश्वर का मिलना
वृद्ध दुकानदार ने बच्चे से एक रूपया लिया और कहा, “कोई दिक्कत नहीं है। एक रूपये में ही ईश्वर मिल सकते हैं।” फिर उसने एक गिलास पानी भरकर बच्चे को दिया और कहा, “यह पानी पिलाने से ही तुम्हारी मां ठीक हो जाएंगी।”
अगले दिन, अस्पताल में मेडिकल स्पेशलिस्ट आए और महिला का ऑपरेशन किया। कुछ ही समय में महिला स्वस्थ हो गईं। जब उन्होंने अस्पताल का बिल देखा, तो हैरान रह गईं। डॉक्टर ने कहा, “टेंशन की कोई बात नहीं है। एक वृद्ध सज्जन ने आपके सारे बिल चुका दिए हैं। साथ में एक चिट्ठी भी दी है।”
चिट्ठी में लिखा संदेश: विश्वास की शक्ति
महिला ने चिट्ठी पढ़ी, जिसमें लिखा था, “मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको तो स्वयं ईश्वर ने ही बचाया है… मैं तो सिर्फ एक ज़रिया हूं। यदि आप धन्यवाद देना चाहती हैं, तो अपने अबोध बच्चे को दीजिए, जिसने सिर्फ एक रूपया लेकर ईश्वर को ढूंढने की कोशिश की। यही है विश्वास। वहीं यह कहानी बताती है कि अगर मन में अडिग विश्वास हो, तो ईश्वर की मदद किसी भी रूप में मिल सकती है, और कभी-कभी वह सिर्फ एक रूपये से भी मिल जाते हैं।